Hindi Moral Story on “Jaisi Karni Waisi Bharni”, “जैसी करनी वैसी भरनी” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

जैसी करनी वैसी भरनी

Jaisi Karni Waisi Bharni

 

एक कुएँ में बहुत से मेढक रहते थे। उनके राजा का नाम था गंगदत्त। गंगदत्त बहुत झगड़ालू स्वभाव का था। आस-पास दो-तीन और भी कुएँ थे। उनमें भी मेढक रहते थे। हर कुएँ के मेढकों का अपना राजा था। हर राजा से किसी-न-किसी बात पर गंगदत्त का झगड़ा चलता ही रहता था। वह अपनी मूर्खता से कोई गलत काम करने लगता और बुद्धिमान मेढक रोकने की कोशिश करता तो मौका मिलते ही अपने पाले गुंडे मेढकों से पिटवा देता। कुएँ के मेढकों के मन में गंगदत्त के प्रति रोष बढ़ता ही जा रहा था।

‘एक दिन गंगदत्त पड़ोसी मेढक राजा से खूब झगड़ा। खूब तू-तू, मैंमैं हुई। गंगदत्त ने अपने कुएँ में आकर बताया कि पड़ोसी राजा ने उसका अपमान किया है। अपमान का बदला लेने के लिए उसने अपने मेढकों को आदेश दिया कि पड़ोसी कुएँ पर हमला करें। सब जानते थे कि झगड़ा गंगदत्त ने ही शुरू किया होगा।

कुछ सयाने मेढकों तथा बुद्धिमानों ने एकजुट होकर एक स्वर में कहा, “राजन, पड़ोसी कुएँ में हमसे दुगने मेढक हैं। वे स्वस्थ व हमसे अधिक ताकतवर हैं। हम यह लड़ाई नहीं लड़ेंगे।”

गंगदत्त सन्न रह गया और बुरी तरह तिलमिला गया। मन-ही-मन में उसने ठान ली कि इन गद्दारों को भी सबक सिखाना होगा। गंगदत्त ने अपने बेटों को बुलाकर भड़काया, “बेटा, पड़ोसी राजा ने तुम्हारे पिता का मोर अपमान किया है। जाओ, पड़ोसी राजा के बेटों की ऐसी पिटाई करो कि वे पानी माँगने लग जाएँ।”

गंगदत्त के बेटे एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। आखिर बड़े बेटे ने कहा “पिताजी, आपने कभी हमें टर्राने की इजाजत नहीं दी। टर्राने से ही मेटकों में बल आता है, हौसला आता है और जोश आता है। आप ही बताइए कि बिना हौसले और जोश के हम किसी की क्या पिटाई कर पाएँगे?” |

अब गंगदत्त सबसे चिढ़ गया। एक दिन वह कुढ़ता और बड़बड़ाता कएँ से बाहर निकलकर इधर-उधर घूमने लगा। उसे एक भयंकर नाग पास ही बने अपने बिल में घुसता नजर आया। उसकी आँखें चमकी। जब अपने ही दुश्मन बन गए हों तो दुश्मन को अपना बनाना चाहिए। यह सोचकर वह बिल के पास जाकर बोला, “नागदेव, मेरा प्रणाम।” ।

नागदेव फुफकारा, “अरे मेढक मैं तुम्हारा बैरी हूँ। तुम्हें खा जाता हूँ और तुम मेरे बिल के आगे आकर मुझे आवाज दे रहे हो।”

गंगदत्त टर्राया, “हे नाग, कभी-कभी शत्रुओं से ज्यादा अपने दुःख देने लगते हैं। मेरा अपनी जाति वालों और सगों ने इतना घोर अपमान किया है। कि उन्हें सबक सिखाने के लिए मुझे तुम जैसे शत्रु के पास सहायता माँगने आना पड़ा है। तुम मेरी दोस्ती स्वीकार करो और मजे करो।”

नाग ने बिल से अपना सिर बाहर निकाला और बोला, “मजे, कैसे मजे?”

गंगदत्त ने कहा “मैं तुम्हें इतने मेढक खिलाऊँगा कि तुम मुटाते-मुटाते अजगर बन जाओगे।”

नाग ने शंका व्यक्त की, “पानी में मैं जा नहीं सकता। कैसे पकडुंगा मेढक?”

गंगदत्त ने ताली बजाई. “नाग भाई, यहीं तो मेरी दोस्ती तुम्हारे काम आएगी। मैंने पड़ोसी राजाओं के कुओं पर नजर रखने के लिए अपने जासूस हनों से गुप्त सुरंगें खुदवा रखी हैं। हर कुएँ तक उनका रास्ता जाता है। सरंगें जहाँ मिलती हैं, वहाँ एक कक्ष है। तुम वहाँ रहना और जिस-जिस मेढक को खाने के लिए कहूँ, उन्हें खाते जाना।”

नाग गंगदत्त से दोस्ती के लिए तैयार हो गया, क्योंकि उसमें उसका लाभ-ही-लाभ था। एक मूर्ख बदले की भावना में अंधा होकर अपना ही दश्मन हो जाए तो दुश्मन क्यों न इसका लाभ उठाए?

नाग गंगदत्त के साथ सुरंग कक्ष में जाकर बैठ गया। गंगदत्त ने पहले सारे पड़ोसी मेढक राजाओं और उनकी प्रजा को खाने के लिए कहा। नाग कछ सप्ताह में सारे मेढकों को खा गया। जब सब समाप्त हो गए तो नाग गंगदत्त से बोला, “अब किसे खाऊँ? जल्दी बता। चौबीस घंटे पेट फुल रखने की आदत पड़ गई है।”

गंगदत्त ने कहा, “अब मेरे कुएँ के सभी सयानों और बुद्धिमान मेढकों को खाओ।”

वह खाए जा चुके तो प्रजा की बारी आई। गंगदत्त ने सोचा, “प्रजा की ऐसी-तैसी। हर समय कुछ-न-कुछ शिकायत करती रहती है। उनको खाने के बाद नाग ने खाना माँगा तो गंगदत्त बोला, “नागमित्र, अब केवल मेरा कुनबा और मेरे मित्र बचे हैं। खेल खत्म और मेढक हजम।”

नाग ने फन फैलाया और फुफकारने लगा, “मेढक, मैं अब कहीं नहीं . जाने का। तू अब खाने का इंतजाम कर वरना हिस्स।”

गंगदत्त की बोलती बंद हो गई। उसने नाग को अपने मित्र खिलाए, फिर उसके बेटे नाग के पेट में गए। गंगदत्त ने सोचा कि मैं और मेढकी जिंदा रहे तो बेटे और पैदा कर लेंगे। बेटे खाने के बाद नाग फुफकारा, “और खाना कहाँ है? गंगदत्त ने डरकर मेढकी की ओर इशारा किया। गंगदत्त ने स्वयं के मन को समझाया, “चलो बूढ़ी मेढकी से छुटकारा मिला। नई जवान मेढकी से विवाह कर नया संसार बसाऊँगा।”

मेढकी को खाने के बाद नाग ने मुँह फाड़ा, “खाना।”

गंगदत्त ने हाथ जोड़े, “अब तो केवल मैं बचा हूँ। तुम्हारा दोस्त गंगदत्त। अब लौट जाओ।” नाग बोला, “तू कौन सा मेरा मामा लगता है।” और उसे हड़प गया।

सीख : जैसी करनी वैसी भरनी।

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