मित्र की परख
Mitra ki Parakh
गोलू और मोलू पक्के दोस्त थे। गोलू जहाँ दुबला-पतला था, वहीं मोलू मोटा गोल-मटोल। दोनों एक-दूसरे पर जान देने का दम भरते थे, लेकिन उनकी जोड़ी देखकर लोगों की हँसी छूट जाती थी। एक बार उन्हें किसी दूसरे गाँव में रहनेवाले एक मित्र का निमंत्रण मिला। उसने उन्हें अपनी बहन के विवाह में शामिल होने के लिए बुलाया था।
वह गाँव ज्यादा दूर नहीं था, लेकिन वहाँ तक पहुँचने के लिए जंगल होकर गुजरना पड़ता था और उस जंगल में जंगली जानवरों की भरमार थी।
दोनों चल दिए। जब वे जंगल से गुजर रहे थे, उन्हें सामने से एक भालू आता दिखा। दोनों भय से थर-थर काँपने लगे। तभी दुबला-पतला गोलू दौड़कर एक पेड़ पर जा चढ़ा, लेकिन मोटा होने के कारण मोलू उतना तेज नहीं दौड़ सकता था। इधर भालू भी निकट आ चुका था, फिर भी मोलू ने साहस नहीं खोया। उसने सुन रखा था कि भालू मृत शरीर को नहीं खाते। वह तुरंत जमीन पर लेट गया, साँस रोक ली और ऐसा अभिनय किया मानो शरीर में प्राण हैं ही नहीं।
भालू घुरघुराता हुआ मोलू के पास आया, उसके चेहरे व शरीर को सूँघा और उसे मृत समझकर आगे बढ़ गया।
जब भालू काफी दूर निकल गया तो गोलू पेड़ से उतरकर मोलू के निकट आया और बोला, “मित्र, मैंने देखा था, भालू तुमसे कुछ कह रहा था। क्या कहा उसने ?”
मोलू ने गुस्से में भरकर जवाब दिया, “मुझे मित्र कहकर मत बुलाओ और ऐसा ही कुछ भालू ने भी मुझसे कहा था। उसने कहा, अपने मतलबी दोस्त गोलू पर कभी भूलकर भी विश्वास मत करना, वह तुम्हारा मित्र नहीं है।”
सुनकर गोलू बहुत शर्मिंदा हो गया। उसे एहसास हुआ कि उससे कितनी भारी भूल हो गई थी। उनकी मित्रता भी सदैव के लिए समाप्त हो गई।
सीख : जो संकट में काम आए, वही सच्चा मीत ।