Hindi Moral Story Essay on “मददगार”, “Madadgaar ” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

मददगार

Madadgaar 

प्राचीन काल में एक नदी के किनारे बसा नगर व्यापार का केंद्र था फिर आए उस नगर के बुरे दिन, जब एक वर्ष भारी वर्षा हुई। नदीं ने अपना रास्ता बदल दिया।

लोगों के लिए पीने का पानी न रहा और देखते-ही-देखते नगर वीरान हो गया। अब वह जगह केवल चूहों के लायक रह गई। चारों ओर चूहे- ही चूहे नजर आने लगे। चूहों का पूरा साम्राज्य ही स्थापित हो गया। चूहों के उस साम्राज्य का राजा बना मूषकराज चूहा। चूहों का भाग्य देखिए, उनके बसने के बाद नगर के बाहर जमीन से पानी का एक सोता फूट पड़ा और वहाँ एक बड़ा तालाब बन गया।

नगर से कुछ ही दूर एक घना जंगल था। जंगल में अनगिनत हाथी रहते थे। उनका राजा गजराज नामक एक विशाल हाथी था। उस जंगल क्षेत्र में भयानक सूखा पड़ा। जीव-जंतु पानी की तलाश में इधर-उधर मारे-मारे फिरने लगे। भारी-भरकम शरीर वाले हाथियों की तो दुर्दशा हो गई।

हाथियों के बच्चे प्यास से व्याकुल होकर चिल्लाने व दम तोड़ने लगे। गजराज खुद सूखे की समस्या से चिंतित था और हाथियों का कष्ट जानता था। एक दिन गजराज की मित्र चील ने आकर खबर दी कि खँडहर बने नगर के दूसरी ओर एक तालाब है। गजराज ने सबको तुरंत उस तालाब की ओर चलने का आदेश दिया। सैकड़ों हाथी प्यास बुझाने डोलते हुए चल पड़े। तालाब तक पहुँचने के लिए उन्हें खंडहर बने नगर के बीच से गुजरना पड़ा।

हाथियों के हजारों पैर चूहों को रौंदते हुए निकल गए। हजारों चूहे मारे गए। खँडहर नगर की सड़कें चूहों के खून-मांस के कीचड़ से लथपथ हो गई। मुसीबत यहीं खत्म नहीं हुई। हाथियों का दल फिर उसी रास्ते से लौटा। हाथी रोज उसी मार्ग से पानी पीने जाने लगे।

काफी सोचने-विचारने के बाद मूषकराज के मंत्रियों ने कहा, “महाराज, आपको ही जाकर गजराज से बात करनी चाहिए। वह दयालु हाथी हैं।” मूषकराज हाथियों के वन में गया। एक बड़े पेड़ के नीचे गजराज खड़ा था।

मूषकराज उसके सामने के बड़े पत्थर के ऊपर चढ़ा और गजराज को नमस्कार करके बोला, “गजराज को मूषकराज का नमस्कार। हे महान् हाथी, मैं एक निवेदन करना चाहता हूँ।”

आवाज गजराज के कानों तक नहीं पहुँच रही थी। दयालु गजराज उसकी बात सुनने के लिए नीचे बैठ गया और अपना एक कान पत्थर पर चढ़े मूषकराज के निकट ले जाकर बोला, “नन्हे मियाँ, आप कुछ कह रहे थे। कृपया फिर से कहिए।”

मूषकराज बोला, “हे गजराज, मूषकराज चूहा कहते हैं। हम बड़ी संख्या में खँडहर बनी नगरी में रहते हैं। आपके हाथी रोज तालाब तक जाने के लिए नगरी के बीच से गुजरते हैं। हर बार उनके पैरों तले हजारों चूहे मरते हैं। यह मूषक संहार बंद न हुआ तो हम नष्ट हो जाएँगे।”

गजराज ने दुःख भरे स्वर में कहा, “मूषकराज, आपकी बात सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ। हमें ज्ञान ही नहीं था कि हम इतना अनर्थ कर रहे हैं। हम नया रास्ता ढूँढ़ लेंगे।”

मूषकराज कृतज्ञता भरे स्वर में बोला, “गजराज, आपने मुझ जैसे छोटे जीव की बात ध्यान से सुनी। आपका धन्यवाद। गजराज, कभी हमारी जरूरत पड़े तो याद जरूर कीजिएगा।”

गजराज ने सोचा कि यह नन्हा जीव हमारे किस काम आएगा। सो उसने केवल मुसकराकर मूषकराज को विदा किया। कुछ दिन बाद पड़ोसी देश के राजा ने सेना को मजबूत बनाने के लिए उसमें हाथी शामिल करने का निर्णय लिया। राजा लोग हाथी पकड़ने आए। जंगल में आकर वे चुपचाप कई प्रकार के जाल बिछाकर चले जाते हैं। सैकड़ों हाथी पकड़ लिये गए। एक रात हाथियों के पकड़े जाने से चिंतित गजराज जंगल में घूम रहे थे कि उनका पैर सूखी पत्तियों के नीचे छल से दबाकर रखे रस्सी के फंदे में फँस जाता है। जैसे ही गजराज ने पैर आगे बढ़ाया रस्सा कस गया। रस्से का दूसरा सिरा एक पेड़ के मोटे तने से मजबूती से बँधा था। गजराज चिंघाड़ने लगा। उसने अपने सेवकों को पुकारा, लेकिन कोई नहीं आया। कौन फंदे में फँसे हाथी के निकट आएगा? एक युवा जंगली भैंसा गजराज का बहुत आदर करता था। जब वह छोटा था तो एक बार वह एक गड्ढे में जा गिरा था। उसकी चिल्लाहट सुनकर गजराज ने उसकी जान बचाई थी। चिंघाड़ सुनकर वह दौड़ा और फंदे में फँसे गजराज के पास पहुँचा। गजराज की हालत देख उसे बहुत धक्का लगा। वह चीखा, “यह कैसा अन्याय है? गजराज, बताइए क्या करूँ? मैं आपको छुड़ाने के लिए अपनी जान भी दे सकता हूँ।”

गजराज बोले, “बेटा, तुम बस दौड़कर खँडहर नगरी जाओ और चूहों के राजा मूषकराज को सारा हाल बता दो। उससे कहना कि मेरी सारी आस टूट चुकी है।”

भैंसा अपनी पूरी शक्ति से दौड़ा-दौड़ा मूषकराज के पास गया और सारी बात बताई। मूषकराज तुरंत अपने चालीस-पचास सैनिकों के साथ भैंसे की पीठ पर बैठा और सब शीघ्र ही गजराज के पास पहुँच गए। चूहे भैंसे पीठ पर से कूदकर फंदे की रस्सी कुतरने लगे। कुछ ही देर में फंदे की रस्सी कट गई व गजराज आजाद हो गए।

सीख : आपसी सद्भाव व प्रेम कष्टों को हर लेता है।

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