घंटीधारी ऊँट
Ghantidhari Unth
एक बार की बात है कि किसी गाँव में एक बुनकर रहता था। वह बहुत गरीब था। उसकी शादी बचपन में ही हो गई। बीवी आने के बाद घर का खर्चा बढ़ना था। यही चिंता उसे खाए जाती। फिर गाँव में अकाल पड़ा। लोग कंगाल हो गए। बुनकर की आय एकदम खत्म हो गई। उसके पास शहर जाने के सिवा और कोई चारा न रहा।
शहर में उसने कुछ महीने छोटे-मोटे काम किए। थोड़ा सा पैसा अंटी में आ गया और गाँव से खबर आने पर कि अकाल समाप्त हो गया है, वह गाँव की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे एक जगह सड़क किनारे एक ऊँटनी नजर आई। ऊँटनी बीमार नजर आ रही थी और वह गर्भवती थी। उसे ऊँटनी पर दया आ गई और वह उसे अपने साथ अपने घर ले आया।
घर में ऊँटनी को ठीक चारा व घास मिलने लगी तो वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई और समय आने पर उसने एक स्वस्थ ऊँट बच्चे को जन्म दिया। ऊँट बच्चा उसके लिए बहुत भाग्यशाली साबित हुआ। कुछ दिन बाद एक कलाकार ग्रामीण जीवन पर चित्र बनाने उसी गाँव में आया। पेंटिंग के बुश बनाने के लिए वह बुनकर के घर आकर ऊँट के बच्चे की दुम के बाल ले जाता। लगभग दो सप्ताह गाँव में रहने के बाद चित्र बनाकर कलाकार चला गया।
इधर ऊँटनी खूब दूध देने लगी तो बुनकर उसे बेचने लगा। एक दिन वही कलाकार गाँव लौटा और जुलाहे को काफी सारे पैसे दे गया, क्योंकि कलाकार ने उन चित्रों से बहुत पुरस्कार जीते थे और उसके चित्र अच्छी कीमत में बिके थे। जुलाहा उस ऊंठ के बच्चे को अपने भाग्य का सितारा मानने लगा। उसने शिशु ऊँट के गले के लिए सुंदर घंटी खरीदी और पहना दी। इस प्रकार बुनकर के दिन फिर गए। वह अपनी दुल्हन को घर ले आया।
जीवन में ऊँटों के आने से बुनकर के जीवन में जो सुख आया, तो उससे सोचा कि जुलाहे का धंधा छोड़ क्यों न वह ऊँटों का व्यापारी बन जाए। उसकी पत्नी भी उससे सहमत हुई। अब तक वह भी गर्भवती हो गई थी और अपने सुख के लिए ऊँटनी व ऊँट बच्चे की आभारी थी ।
बुनकर ने कुछ ऊँट खरीद लिये। उसका ऊँटों का व्यापार चल निकला। अब उसके पास ऊँटों का एक बड़ा समूह हर समय रहता। उन्हें चरने के लिए दिन को छोड़ दिया जाता। ऊँट बच्चा, जो अब जवान हो चुका था, उनके साथ घंटी बजाता जाता।
एक दिन घंटीधारी के हमउम्र एक ऊँट ने उससे पूछा, “भैया! तुम हमसे दूर-दूर क्यों रहते हो ?”
घंटीधारी गर्व से बोला, “वाह तुम एक साधारण ऊँट हो। मैं घंटीधारी, मालिक का दुलारा हूँ। मैं अपने से ओछे ऊँटों में शामिल होकर अपना मान नहीं खोना चाहता।”
उसी गाँव के वन में एक शेर रहता था। शेर एक ऊँचे पत्थर पर चढ़कर ऊँटों को देखता रहता था। उसे एक ऊँट और ऊँटों से अलग-थलग रहता नजर आया। जब शेर किसी जानवर के झुंड पर आक्रमण करता है तो किसी अलग-थलग पड़े शिकार को ही चुनता है। घंटी की आवाज के कारण यह काम और भी सरल हो गया था। बिना आँखों देखे वह घंटी की आवाज पर घात लगा सकता था ।
एक दिन जब ऊँटों का दल चरकर लौट रहा था, तब घंटीधारी बाकी ऊँटों से बीस कदम पीछे चल रहा था। शेर तो घात लगाए बैठा ही था। घंटी की आवाज को निशाना बनाकर वह झपटा और उसे जंगल में खींच ले गया। इस प्रकार घंटीधारी के अहंकार ने उसके जीवन की ध्वनि छीन ली।
सीख : स्वयं को ही सर्वश्रेष्ठ समझनेवाले का अहंकार शीघ्र ही उसे ले डूबता है।