भाग्य भरोसे
Bhagya Bharose
एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा तालाब था। उस तालाब में बहुत सी मछलियाँ रहती थीं। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियाँ उस तालाब में आती थीं। वह तालाब लंबी घास व झाड़ियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से नजर नहीं आता था।
उसमें तीन मछलियाँ रहती थीं। उनके स्वभाव भिन्न थे। अन्ना संकट आने के लक्षण मिलते ही संकट टालने का उपाय करने में विश्वास रखती थी। प्रत्यु कहती थी कि संकट आने पर ही उससे बचने का यत्न करो। यद्दी का सोचना था कि संकट को टालने या उससे बचने की बात बेकार है। करने कराने से कुछ नहीं होता, जो किस्मत में लिखा है, वह होकर रहेगा।
एक दिन शाम को मछुआरे नदी में मछलियाँ पकड़कर घर जा रहे थे। उनके जाल में बहुत कम मछलियाँ फँसी थीं। अत: वे उदास थे। तभी उन्हें झाड़ियों के ऊपर मछलीखोर पक्षियों का झुंड जाता दिखाई दिया। सबकी चोंच में मछलियाँ दबी थीं। वे चौंके।
एक ने अनुमान लगाया, “दोस्तो! लगता है झाड़ियों के पीछे नदी से जुड़ा तालाब है, जहाँ इतनी सारी मछलियाँ पल रही हैं।”
मछुआरे खुश होकर झाड़ियों में से होकर तालाब के तट पर आ गए और ललचाई नजर से मछलियों को देखने लगे।
एक मछुआरा बोला, “अहा! इस तालाब में तो मछलियाँ भरी पडी आज तक हमें इसका पता ही नहीं लगा।”
“यहाँ हमें ढेर सारी मछलियाँ मिलेंगी।” दूसरा बोला।
तीसरे ने कहा, “आज तो शाम घिरने वाली है। कल सुबह ही आकर यहाँ जाल डालेंगे।”
इस प्रकार मछुआरे दूसरे दिन का कार्यक्रम तय करके चले गए। तीनों मछलियों ने मछुआरों की बात सुन ली थी।
अन्ना मछली ने कहा, “साथियो! तुमने मछुआरे की बात सुनी। अब हमारा यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है। खतरे की सूचना हमें मिल गई है। समय रहते अपनी जान बचाने का उपाय करना चाहिए। मैं तो अभी इस तालाब को छोड़कर नहर के रास्ते नदी में जा रही हूँ। उसके बाद मछुआरे सुबह आएँ, जाल फेंके, मेरी बला से। तब तक मैं तो बहुत दूर अठखेलियाँ कर रही होऊँगी।”
प्रत्यु मछली बोली, “तुम्हें जाना है तो जाओ, मैं तो नहीं आ रही। अभी खतरा आया कहाँ है, जो इतना घबराने की जरूरत है। हो सकता है संकट आए ही न। उन मछुआरों का यहाँ आने का कार्यक्रम रद्द हो सकता है, हो सकता है रात को उनके जाल चूहे कुतर जाएँ, हो सकता है उनकी बस्ती में आग लग जाए। भूचाल आकर उनके गाँव को नष्ट कर सकता है या रात को मूसलाधार वर्षा आ सकती है और बाढ में उनका गाँव बह सकता है, इसलिए उनका आना निश्चित नहीं है। जब वे आएँगे. तब-की-तब सोचेंगे। हो सकता है कि मैं उनके जाल में ही न फँसँ।”
यद्दी ने अपनी भाग्यवादी बात कही, “भागने से कुछ नहीं होने का। मछुआरों को आना है तो वह आएँगे। हमें जाल में फँसना है तो हम फँसेंगे। किस्मत में मरना ही लिखा है तो क्या किया जा सकता है?”
इस प्रकार अन्ना तो उसी समय वहाँ से चली गई। प्रत्यु और यद्दी तालाब में ही रहीं। भोर हुई तो मछुआरे अपने जाल को लेकर आए और लगे तालाब में जाल फेंकने और मछलियाँ पकड़ने। संकट को आया देख जान बचाने के उपाय सोचने । उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा।आस पास छिपने के लिए कोई खोखली जगह भी नहीं थी। तभी उसे याद आया कि उस तालाब में काफी दिनों से एक मरे हुए ऊदबिलाव की लाश तेरती रही हैं। वह उसके बचाव के काम आ सकती है।
जल्दी ही उसे वह लाश मिल गई। लाश सड़ने लगी थी। प्रत्यु लाश के पेट में घुस गई और सड़ती लाश की सडाँध अपने ऊपर लपेटकर बाहर निकली। कुछ ही देर में मछुआरे के जाल में प्रत्यु फँस गई। मछुआरे ने अपना जाल खींचा और मछलियों को किनारे पर जाल से उलट दिया। बाकी मछलियाँ तो तड़पने लगीं, परंतु प्रत्यु दम साधकर मरी हुई मछली की तरह पड़ी रही। मछुआरे को सड़ांध का भभका लगा तो मछलियों को देखने लगा। उसने निश्चल पड़ी प्रत्यु को उठाया और सूंघा, “आक! यह तो कई दिनों की मरी मछली है। सड़ चुकी है।” ऐसे बड़बड़ाकर बुरा सा मुँह बनाकर उस मछुआरे ने प्रत्यु को तालाब में फेंक दिया।
प्रत्यु अपनी बुद्धि का प्रयोग कर संकट से बच निकलने में सफल हो गई थी। पानी में गिरते ही उसने गोता लगाया और सुरक्षित गहराई में पहुंचकर जान की खैर मनाई।
यद्दी भी दूसरे मछुआरे के जाल में फँस गई थी और एक टोकरे में डाल दी गई थी। भाग्य के भरोसे बैठी रहनेवाली यद्दी ने उसी टोकरी में अन्य मछलियों की तरह तड़प-तड़पकर प्राण त्याग दिए।
सीख : भाग्य के भरोसे हाथ-पर-हाथ धरकर बैठे। रहनेवाले का विनाश निश्चित है।