Hindi Moral Story Essay on “Bagula Bhagat”, “बगुला भगत” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

बगुला भगत

Bagula Bhagat

 

एक वन प्रदेश में एक बहुत बड़ा तालाब था। हर प्रकार के जीवों के लिए उसमें भोजन सामग्री होने के कारण वहाँ नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियाँ, कछुए और केकड़े आदि वास करते थे। पास में ही एक बगुला रहता था, जिसे परिश्रम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसकी आँखें भी कुछ कमजोर थीं। मछलियाँ पकड़ने के लिए तो मेहनत करनी पड़ती है, जो उसे खलती थी, इसलिए आलस्य के मारे वह प्रायः भूखा ही रहता। एक टाँग पर खड़ा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रोज भोजन मिले। एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।

बगुला तालाब के किनारे खड़ा हो गया और लगा आँखों से आँसू बहाने । एक केकड़े ने उसे आँसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा, “मामा, क्या बात है, भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खड़े आँसू बहा रहे हो ?”

बगुले ने जोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला, “बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करूँगा। मेरी आत्मा जाग उठी हैं, इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड़ रहा हूँ। तुम तो देख ही रहे हो।” मर नहीं जाओगे?”

केकड़ा बोला, “मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे ?”

बगुले ने एक और हिचकी ली, “ऐसे जीवन का नष्ट होना ही ना है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहाँ बारह वर्ष लंबा सूखा पड़ेगा।”

बगले ने केकड़े को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी दात्मा ने बताई है, जिसकी भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती। केकड़े ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया है और यहाँ सूखा पड़नेवाला है।

उस तालाब के सारे जीव मछलियाँ, कछुए, केकड़े, बतखें व सारस आदि दौडे-दौड़े बगुले के पास आए और बोले, “भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लड़ाओ तुम तो महाज्ञानी बन गए हो।”

बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहाँ से कुछ ही दूरी पर एक तालाब है, जिसमें पहाड़ी झरना बहकर गिरता है। वह कभी नहीं सूखता। यदि तालाब के सब जीव वहाँ चले जाएँ तो बचाव हो सकता है। अब समस्या यह थी कि वहाँ तक जाया कैसे जाएँ? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी, “मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहाँ तक पहुँचाऊँगा, क्योंकि अब मेरा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गजरेगा।”

सभी जीवों ने गद्गद होकर ‘बगुला भगतजी की जय’ के नारे लगाए। – अब बगुला भगत की पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ भगत जी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते । तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी। चट्टान के पास मरे जीवों की हड़ियों का ढेर बढ़ने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चरबी के तेज से चमकने लगे। उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते, “देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है।”

बगुला भगत मन-ही-मन खूब हँसता। वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पड़े हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैं। ऐसे। मूर्खों की दुनिया में थोड़ी चालाकी से काम लिया जाए तो मजे-ही-मजे हैं। बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उड़ाई जा सकती है। संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौका मिलता है। बैठे-बिठाए पेट भरने का । जुगाड़ हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता है।

महीनों यही क्रम चला। एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा, “मामा.. तुमने इतने सारे जानवर यहाँ से वहाँ पहुँचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई।”

भगतजी बोले, “बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा।”

केकड़ा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया। जब वह चट्टान के निकट पहुँचा तो वहाँ हड्डियों का पहाड़ देखकर केकड़े का माथा ठनका। वह हकलाया, “यह हड्डियों का ढेर कैसा है मामा? वह तालाब कितनी दूर है, मामा?”

बगुला भगत ठाँ-ठाँ करके खूब हँसा और बोला, “मुर्ख, वहाँ कोई तालाब नहीं है। मैं एक-एक को पीठ पर बिठाकर यहाँ लाकर खाता रहता हूँ। आज तू मरेगा।”

केकड़ा सारी बात समझ गया। वह सिहर उठा, परंतु उसने हिम्मत । नहीं हारी और तुरंत जंबूर जैसे अपने पंजों को आगे बढ़ाकर उनसे दुष्ट बगुले की गरदन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरू न उड़ गए।

फिर केकड़ा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा।

सीख : किसी की बात पर आँख मूंदकर भरोसा न करें।

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