शेर की खाल में भेड़िया
Sher ki khaal mein Bhediya
किसी नगर में एक धोबी रहता था। उसके पास एक गधा था, जिस पर वह कपड़े लादकर नदी तट पर ले जाता और धुले कपड़े लादकर लौटता। धोबी का परिवार बड़ा था। सारी कमाई आटे-दाल व चावल में खप जाती। गधे के लिए चारा खरीदने के लिए कुछ न बचता। गाँव की चरागाह पर गाय-भैंसें चरतीं। अगर गधा उधर जाता तो चरवाहे डंडों से पीटकर उसे भगा देते। ठीक से चारा न मिलने के कारण गधा बहुत दुर्बल रहने लगा । धोबी को भी चिंता होने लगी, क्योंकि कमजोरी के कारण उसकी चाल इतनी धीमी हो गई थी कि नदी तक पहुँचने में पहले से दुगना समय लगने लगा था।
एक दिन नदी किनारे जब धोबी ने कपड़े सूखने के लिए बिछा रखे थे तो आँधी आई। कपड़े इधर-उधर हवा में उड़ गए। आँधी थमने पर उसे दूर-दूर तक जाकर कपड़े उठाकर लाने पड़े। अपने कपड़े ढूँढ़ता हुआ वह सरकंडों के बीच घुसा। सरकंडों के बीच उसे एक मरा बाघ नजर आया।
धोबी कपड़े लेकर लौटा और गट्ठर गधे पर लादने लगा। गधा लड़खड़ाया। धोबी ने देखा कि उसका गधा इतना कमजोर हो गया है कि एक-दो दिन बाद बिल्कुल ही बैठ जाएगा। तभी धोबी को एक उपाय सूझा। वह सोचने लगा, “अगर मैं उस बाघ की खाल उतारकर ले आऊँ और रात को इस गधे को वह खाल ओढ़ाकर खेतों की ओर भेजूँ तो लोग इसे बाघ समझकर डरेंगे। कोई निकट नहीं फटकेगा। गधा खेत चर लिया करेगा।” धोबी ने ऐसा ही किया। दूसरे दिन नदी तट पर कपड़े जल्दी धोकर सूखने डाल दिए और फिर वह सरकंडों के बीच जाकर बाघ की खाल उतारने लगा। शाम को लौटते समय वह खाल को कपड़ों के बीच छिपाकर घर ले आया।
रात को जब सब सो गए तो उसने बाघ की खाल गधे को ओढ़ाई। गधा दूर से देखने पर बाघ जैसा ही नजर आने लगा। धोबी संतुष्ट हुआ। फिर उसने गधे को खेतों की ओर खदेड़ दिया। गधे ने एक खेत में जाकर फसल खानी शुरू की। रात को खेतों की रखवाली करनेवालों ने खेत में बाघ देखा तो वे डरकर भाग खड़े हुए। गधे ने भरपेट फसल खाई और रात के अँधेरे में ही घर लौट आया। धोबी ने तुरंत खाल उतारकर छिपा दी। अब गधे के मजे आ गए।
हर रात धोबी उसे खाल ओढ़ाकर छोड़ देता। गधा सीधे खेतों में पहुँच जाता और मनपसंद फसल खाने लगता। गधे को बाघ समझकर सब अपने घरों में दुबककर बैठे रहते। फसलें चर-चरकर गधा मोटा होने लगा। अब वह दुगना भार लेकर चलता। धोबी भी खुश था।
मोटा-ताजा होने के साथ-साथ गधे के दिल का भय भी मिटने लगा। उसका जन्मजात स्वभाव जोर मारने लगा। एक दिन भरपेट खाने के बाद गधे की तबीयत मस्त हो गई और वह लगा लोट लगाने। इससे बाघ की खाल तो एक ओर गिर गई। अब वह खालिस गधा बनकर उठा और डोलता हुआ खेत से बाहर निकला। गधे के लोट लगाने के समय पौधों के रौंदे जाने और चटकने की आवाज फैली। एक रखवाला चुपचाप बाहर निकला। खेत में झाँका तो उसे एक ओर गिरी बाघ की खाल नजर आई। वह चिल्लाया, “अरे, यह तो गधा है।”
उसकी आवाज औरों ने भी सुनी। सब डंडे लेकर दौड़े। गधे का कार्यक्रम खेत से बाहर आकर रेंकने का था। उसने मुँह खोला ही था कि उस पर डंडे बरसने लगे। क्रोध से भरे रखवालों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। उसकी सारी पोल खुल चुकी थी। धोबी को भी वह नगर छोड़कर भागना पड़ा।
सीख: पहनावा बदलने से असली चरित्र नहीं बदलता ।