Hindi Moral Story Essay on “कंजूस गीदड़”, “Kanjoos Gidad” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

कंजूस गीदड़

Kanjoos Gidad 

एक जंगल में एक गीदड़ रहता था। वह अपने शिकार को खाने में कंजूसी किया करता था। जितने शिकार से दूसरा गीदड़ दो दिन काम चलाता, वह उतने ही शिकार को सात दिन तक खींचता। जैसे उसने एक खरगोश का शिकार किया। पहले दिन वह एक ही कान खाता। बाकी बचाकर रखता। दूसरे दिन दूसरा कान खाता। ठीक वैसे जैसे कंजूस व्यक्ति पैसा घिस-घिसकर खर्च करता है। गीदड़ अपने पेट की कंजूसी करता। इस चक्कर में प्रायः भूखा रह जाता। इसलिए दुर्बल भी बहुत हो गया था।

एक बार उसे मरा हुआ एक बारहसिंघा हिरण मिला। वह उसे खींचकर अपनी माँद में ले आया। उसने पहले हिरण के सींग खाने का फैसला किया, ताकि मांस बचा रहे। कई दिन वह बस सींग चबाता रहा। इस बीच हिरण का मांस सड़ गया और वह केवल गिद्धों के खाने लायक रह गया। इस प्रकार मक्खीचूस गीदड़ प्रायः हँसी का पात्र बनता। जब वह बाहर निकलता तो दूसरे जीव उसका मरियल सा शरीर देखते और कहते, “वह देखो, मक्खीचूस जा रहा है।”

पर वह परवाह न करता। कंजूसों की यह आदत होती ही है। कंजूसों की अपने घर में भी खिल्ली उड़ती है, पर वह इसे अनसुना कर देते हैं।

उसी वन में एक शिकारी एक दिन शिकार की तलाश में आ निकला। उसने एक सुअर को देखा और निशाना लगाकर तीर छोड़ा। तीर जंगली सुअर की कमर को बींधता हुआ शरीर में जा घुसा। क्रोधित सुअर शिकारी की ओर दौड़ा और खच से अपने नुकीले दंत शिकारी की पैंट में घोंप दिए। शिकारी और शिकार दोनों मर गए।

तभी वहाँ मक्खीचूस गीदड़ आ निकला। वह खुशी से उछल पड़ा। शिकारी व सुअर के मांस को कम-से-कम दो महीने चलाना है। उसने हिसाब लगाया।

“रोज थोड़ा-थोड़ा खाऊँगा।” वह बोला।

तभी उसकी नजर पास ही पड़े धनुष पर पड़ी। उसने धनुष को सूँघा । धनुष की डोर के कोनों पर चमड़ी की पट्टी से लकड़ी बँधी थी। उसने सोचा, “आज तो इस चमड़ी की पट्टी को खाकर ही काम चलाऊँगा। मांस खर्च नहीं करूँगा। पूरा बचा लूँगा।”

यह सोचकर वह धनुष का कोना मुँह में डाल पट्टी काटने लगा। ज्यों ही पट्टी कटी, डोर छूटी और धनुष की लकड़ी पट से सीधी हो गई। धनुष का कोना चटाक से गीदड़ के तालू में लगा और उसे चीरता हुआ, उसकी नाक तोड़कर बाहर निकला। कंजूस गीदड़ वहीं मर गया।

सीख : अधिक कंजूसी का परिणाम बुरा होता है।

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