मित्र को जन्म दिवस पर न आ पाने की असमर्थता पर पत्र
नई दिल्ली-16
दिनांक 1.4….
प्रिय बंधुवर श्रेय,
सप्रेम नमस्ते !
तुम्हारा पत्र यथासमय मिल गया था। यह जान कर बड़ी खुशी हुई कि तुम वय की बीस सीढियाँ लाँघ कर इक्कीसवीं सीढ़ी पर अपना पैर रख रहे हो। मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करो। प्रभु से प्रार्थना है। कि तुम इसी प्रकार शत से भी अधिक सीढियाँ लाँघो और वर्षगाँठ के नए-नए दिवस मनाओ।
बंधु ! मैं अधिक उल्लसित होता, यदि तुम्हारे निमंत्रण पर, तुम्हारे जन्मदिवस पर, तुम्हारे पास होता; पर खेद है, विद्यालय की साहित्य परिषद् के चुनाव के कारण मुझे आंतरिक इच्छा दबानी पड़ रही है। यद्यपि मैं चुनाव के प्रपंचों से प्रायः दूर ही रहता हूँ; किन्तु छात्र बंधुओं के आग्रह ने मुझे भी चुनाव के क्षेत्र में उतार दिया है। सभी साथियों की इच्छा है कि मैं साहित्य परिषद् के मंत्री पद का भार सम्भालें। इसलिए चुनाव लड़ना ही पड़ रहा है।
यद्यपि चुनाव के प्रपंचों के कारण बहुत ही व्यस्त हूँ, फिर भी हृदय की सम्पूर्ण शक्तियों को केन्द्रित कर भगवान् से प्रार्थना कर रहा हूँ कि तुम अपने जीवन के नव वर्ष में और अधिक प्रगति करो । मंगल कामनाओं के साथ,
तुम्हारा मित्र,
मयंक