मित्र को छात्रावास में रहने का आनन्द के विषय में पत्र
परीक्षा भवन,
दिनांक……..
प्रिय अनुज,
सप्रेम नमस्ते !
मुझे तत्काल ही छात्रावास में रहने का अवसर प्राप्त हो गया था। आरम्भ में कुछ दिनों तक तो मुझे बड़ा अटपटा-सा लगा। घर के सुख और आत्मीयजनों के स्नेह का अभाव खला । स्वतंत्रता पर लगा अंकुश भी थोड़ी-सी चुभन लिए रहा। अब मैं यहाँ रहने का अभ्यस्त हो गया हूँ। छात्रावास में रहने वाले साथियों के व्यवहार ने मुझ मोह लिया है।
बंधु ! छात्रावास जीवन को स्वावलम्बी बनाने वाली सोपान है। यहाँ पर नियमितता का पाठ पढ़ाया जाता है। यहाँ पर रहने वाला प्रत्येक छात्र समय पर अपना काम करता है। आलस्य उससे कोसों दूर रहता है। संकोच का भाव मिट जाता है। किसी भी अपने छोटे-बड़े काम के लिए मुँह नहीं ताकना पड़ता है। अपना हाथ जगन्नाथ वाली कहावत चरितार्थ होती है। मिलकर स्वाध्याय करते हैं। खेल के समय खेल का पूरा आनन्द मिलता है। प्रत्येक छात्र के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा जाता है। समय पर उत्तम आहार मिलता है। रहने के लिए हवादार और प्रकाश युक्त कक्ष हैं।
अनुज ! छात्रों का वास्तविक विकास छात्रावास में ही हो पाता है, ऐसा मैं अनुभव कर पाया हैं। इसके आनन्द का वर्णन वही कर सकता है, जिसने इसमें वास किया हो । इसके सम्बन्ध में मैंने अपने अनुभव लिख दिए हैं। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,
तुम्हारा मित्र,
सुरेन्द्र