छोटे भाई को कुसंगति से बचने के लिए पत्र
बम्बई ।
दिनांक 2 जनवरी….
प्रियवर प्रसंग,
प्रसन्न रहो !
तुम्हारा पत्र मिला। यह पढ़ कर अत्यन्त हर्ष हुआ कि तुम परीक्षा की तैयारी में लगे हुए हो। परिवार के सभी लोग चाहते हैं कि तुम परिश्रम से पढ़ो और अच्छे अंक प्राप्त करो। अध्ययन करना ही शिक्षार्थी। का परम धर्म है। जो शिक्षार्थी पढ़ने-लिखने की ओर ध्यान नहीं देते, उनका सम्पूर्ण जीवन असफलताओं के साँचे में ढल जाता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम ऐसे छात्रों की संगति भूल कर भी नहीं करोगे, जो अध्ययन से उदासीन रहते हैं।
बंधु ! मैं भली-भाँति जानता हूँ कि तुम कर्तव्यनिष्ठ हो । फिर भी मैं तुम्हारा ध्यान कुसंगति के कुप्रभाव की ओर आकृष्ट कर रहा हूँ। कुसंगति एक संक्रामक रोग की भाँति है। जब यह रोग किसी को लग जाता है, तो वह बड़ी कठिनाई से ही इससे मुक्त हो पाता है। एक बड़े विद्वान् ने कुसंगति की उपमा विषम ज्वर से दी है। जिस प्रकार विषम ज्वर शीघ्र छूटता नहीं, उसी प्रकार कुसंगति का प्रभाव भी शीघ्र दूर नहीं हो पाता है। वास्तव में, कुसंगति ऐसी ही बुरी, घृणित और विपद्जनक होती है। बडे-बडे मनीषी तक कुसंगति में पड़ कर अपने जीवन को बर्बाद करते देखे गए हैं। अत: इस से बचने का प्रयास करना चाहिए। यह भयानक रोग आजकल चारों ओर फैला हुआ है। कितने ही शिक्षार्थी और युवक इस विषैले रोग की भंवर में फंस कर सदैव के लिए सफलता से वंचित हो चुके हैं।
प्रसंग ! मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। तुम सदैव कुसंगति से बचने का प्रयास करते रहोगे। सदिच्छा के लिए तुम्हारी दृढ़ता और बुराइयों से बचने के लिए तुम्हारा साहस ही तुम्हें सफल बनाएगा। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,
तुम्हारा बड़ा भाई,
आशय