हिंदी : हमारा स्वाभिमान
Hindi -Hamara Swabhiman
हम भारतवासी हैं, हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है। यह हमारा स्वाभिमान है। इसमें हमारी संस्कृति है. सभ्यता है. इसमें हमारा इतिहास है। यह हमारे पूरे देश में सबसे ज्यादा बोली, पढ़ी, लिखी-समझी जाती है। यह वह भाषा है जिसने हमारे देश को स्वतंत्र कराने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके महत्त्व को समझकर ही महात्मा गाँधी ने इसे राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन करने की सिफारिश की थी। जैसे हमारा राष्ट्रगीत हमारा स्वाभिमान है, हमारा राष्ट्रीय ध्वज हमारा स्वाभिमान है, उसी तरह हमारी राष्ट्रभाषा भी हमारा स्वाभिमान हमारा सम्मान है।
जो भी देश का नागरिक हिंदी में बात करना अपना अपमान समझता है वह राष्ट्रभक्त नहीं है। वह स्वार्थभक्त है। हमारे देश के राजनेता लोकसभा में अंग्रेजी में पढ़ना, बोलना और लिखना अपना स्वाभिमान समझते हैं पर सही अर्थ में वे देशभक्त न होकर स्वार्थभक्त हैं क्योंकि जब उन्हें चुनाव लड़ना होता है तब वे जनता के बीच आकर हिंदी में वोट माँगते हैं लेकिन जीत जाने के बाद फिर अंग्रेजी उनकी माँ बाप हो जाती है। भारतीय संविधान ने हमें हिंदी में काम करने की पूरी आजादी दी है। हम हिंदी में सरकारी गैरसरकारी काम कर सकते हैं। हम अपनी बात सरकार को हिंदी में लिख-बोलकर कह सकते हैं। ऐसा करने से हमें कोई नहीं रोक सकता। जब हमें हिंदी में काम करने की पूरी सहूलियत और कानूनी अधिकार है तब भी अगर अंग्रेजी में काम करते हैं तो इसका अर्थ यह है कि हम देश भक्त नहीं है। हमें अपनी मातृभाषा से प्रेम नहीं है।
हममें से बहुत-से लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं। उनसे अंग्रेजी में बात करते हैं, हिंदी बोलने पर फटकारते हैं। उनकी मानसिकता यह है कि हिंदी पढ़ने वालों को रोजगार नहीं मिलेगा। अगर वे अपने बच्चों को अंग्रेजी नहीं पढाएँगे तो इंजीनियर डॉक्टर नहीं बन पाएँगे। न ही अच्छे उद्योगपति बन पाएँगे। इसलिए वे अपने बच्चों को हिंदी नहीं पढ़ाते। विडंबना यह है कि जो हिंदी से अपनी रोटी-रोजी चलाते हैं, वे भी अपने बच्चों को हिंदी पढ़ाना पसन्द नहीं करते। वे जानते हैं कि हिंदी पूरी तरह से रोजगारपरक भाषा है। लेकिन फिर भी अंग्रेजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते-लिखाते हैं। ऐसा वही लोग करते हैं जिन्हें हिंदी से प्यार नहीं है, अपने देश से प्रेम नहीं हैं। ऐसे लोग स्वार्थी हैं। उद्योगपति को जब उत्पाद बेचना होता है तो विज्ञापन हिंदी में देता है। जब सरकारी गैर-सरकारी संस्थानों को अपने उद्योग से संबंधित चिट्ठी आदि लिखनी होती है तो तब अंग्रेज़ी याद आ * जाती है। हमारा स्वाभिमान हिंदी है। इसीलिए वर्तमान केन्द्रीय सरकार अंग्रेजी के बजाय हिंदी में काम करने के लिए अपने कर्मचारियों और जनता को प्रोत्साहित कर रही है। आओ सब मिलकर बोलें- ‘जय हिंदी; जय भारत’।