ऊँट के गले में पालकी
Unth ke Gale me Palki
एक जमींदार पालकी में बैठा कहीं जा रहा था। रास्ते के बगल के खेत में हरे चने देखकर उसका मन ललचा गया। एक कहार से कहा, “थोड़े चने उखाड़ ला”। कहार ने पांच-सात आंटियां चनों की उखाडकर पालकी में रख दीं। ठाकुर साहब छील-छीलकर खा रहे थे कि बगल से एक ऊँट निकला। उसने चने की आंटी खींचने को पालकी में अपनी गर्दन डाल दी। ठाकुर साहब डरकर एक ओर दुबक रहे। ऊँट को चने का पौधा मुँह में लेकर गर्दन बाहर खींचने के बजाय दूसरी ओर निकालना आसान जान पड़ा। पालकी ऊँट की गर्दन में टंग गई। राह चलनेवालों के लिए यह एक अचंभा हो गया। चिल्लाने लगे, “ऊँट के गले में पालकी। देखो, ऊँट के गले में पालकी।” नई बात के लिए चलती है यह कहावत।