तीसरा मुझ को मारेगा
Tisra Mujh Ko Marega
बनियों के डरपोकपन के बहुत से किस्से कहे जाते हैं। उनमें से एक का संबंध इस कहावत से है। पुराने जमाने की बात है, तब न रेल थी, न तार। एक लालाजी को किसी दूसरे शहर जाना था। रास्ता जंगल से जाता था। डर रहे ओकि राह में कोई चोर-डाकू मिल गया तो जान की खैर न होगी। पर “लालच बरी बलाय”, दस-बीस की कमाई का हिसाब था। पीठ पर बगुचा बांधकर चल पडे। चले तो, पर लालाजी के दिमाग में बुरी तरह डाकुओं का डर घुसा हआ था। जरा कहीं पत्ता खड़कता कि लाला के होश गुम हो जाते, आधी जान निकल जाती। ऐसे ही लोगों के लिए कहावत है, “कायर मौत के पहले मरता है।”
संयोगवश, सामने से दो घुड़सवार आते नजर आए। लालाजी ने समझा कि अब जान नहीं बचने की, अबकी मिल गये डाकू! जब घुड़सवार जरा नजदीक आए तो लालाजी ने बहुत झुककर सलाम किया और बड़ी विनय से पूछा, “आप सरदार किधर पधारेंगे?” घुड़सवारों ने उसी स्थान का नाम लिया जहां लालाजी को जाना था। पूछा, “आप लोग वहां कैसे पधार रहे हैं?”
घुड़सवारों ने कहा, “हम लोग राजा के सिपाही हैं।”
अब लालाजी के जी-में-जी आया। बोले, “तो हुजूर, मुझे भी अपने साथ लेते चलें, रास्ता भयंकर है, चोर-डाकुओं का बड़ा डर है। मेरा तो जी सूखा जाता है।”
घुड़सवारों ने कहा, “हम लोगों के साथ क्या डर है, चलो।” ।
इधर-उधर घुड़सवार चलते, बीच में लालाजी। एक मंजिल पार करने के बाद सामने से तीन सवार आते दिखाई दिए। लालाजी ने कांपते हुए कहा, “अबकी डाकू आ पहुंचे। बस, अब खैर नहीं।”
सवारों में से एक ने कहा, “अरे इतना डरते क्यों हो? हम लोगों के पास भी हथियार हैं। एक को तो खतम किये बिना मैं नहीं छोड़ता।”
दूसरा सिपाही बोला, “तो एक की मौत मेरे हाथ समझो।”
लालाजी बोले, “जरूर आप लोग दो को मारेंगे, लेकिन तीसरा मुझको मारेगा।”