सोना सुनार का, आभरन संसार का
Sona Sunar Ka, Aabhran Sansar Ka
किसी राजा ने एक सुनार से पूछा, “तुम गहनों में कितनी खोट मिलाते हो?”
सुनार बोला, “अन्नदाता, सच्ची कहूं कि झूठी?”
राजा ने कहा, “सच-सच कह।”
उसने कहा, सच्ची बात तो यह है कि “सोना सुनार का, आभरन संसार का।” यानी सोना तो सब सुनार का ही हो जाता है, दुनिया की तो शोभा भर बनती है।”
राजा ने कहा, “तुम लोग इतनी चालाकी कैसे करते हो?”
सुनार ने कहा, “महाराज, कछ गढाकर देखा जाय।”
राजा ने उसे एक सोने की मूर्ति गढ़ने को दी। सुनार को महल की चहारदीवारी के अन्दर बिठाया गया। पहरे लगा दिए गये। आते-जाते की तलाशी ली जाती। सुनार ने ठीक वैसी ही एक मूर्ति पीतल की बनाकर अपने घर रख दी, जैसी कि सोने की बननी थी। जब सोने की मूर्ति तैयार हो गई तो सुनार ने पहरे के सिपाही से कहा, “इसे साफ करने को एक हांड़ी खट्टा दही चाहिए।” सांठगांठ तो थी ही। उसी समय उधर से सुनारिन ‘ले दही, ले दही’ चिल्लाती निकली। सुनार ने कहा, “उस दहीवाली को बुलाना, देखें उसका दही काम का है क्या?”
दही में वही पीतल की मूर्ति थी। सुनार ने वह निकाली, सोनेवाली उसमें डाल दी और यह कहकर दही लौटा दिया कि, “यह नहीं चलेगा। सफाई के लिये इससे ज्यादा खट्टा होना चाहिए।”
राजा के सामने मूर्ति गई और पीतल की निकली तो राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। सुनार ने अपनी सब होशियारी राजा को बता दी। कोई-कोई कहता है, राजा ने उसे इस होशियारी के लिए इनाम भी दिया। उतना सोना तो उसके पास रहने ही दिया।