रंग मेंहदी के पत्ते-पत्ते में, पर पिसने पर
Rang Mehandi Ke Patte-Patte, Par Pisne Par
एक तीर्थयात्रा में दो स्त्रियों का साथ हो गया। एक मारवाड़ी थी, दूसरी गुजराती। मारवाड़ी स्त्री के साथ उसकी पतोहू भी थी। गुजराती स्त्री ने देखा कि पतोहू के हाथ पर सुर्ख रंग से बड़ी सुन्दर चित्रकारी की गई है। उसे वह बहुत पसंद आई। उसने मारवाड़ी बहन से पूछा, “यह कैसे की गई है?”
उसने बताया कि इस प्रकार मोम को गलाकर एक नोकदार सलाई से ऐसेऐसे चित्रित करके उस पर मेंहदी लगाने से रंग आ जाता है। गुजराती बहन जरा जल्दबाज तबियत की स्त्री थी। थोड़ा-सा सुनकर ही बोली, “हां-हां, बहन, मैं समझ गई।”
जब वह लौटकर अपने घर गई तो एक दिन किसी माली से कहकर बाग से मेंहदी की पत्तियां मंगवाई और अपनी पतोहू के हाथ पर गरम मोम से चित्र खींचने के बाद ऊपर से मेंहदी की पत्तियां बांध दीं। कई घंटे रहने के बाद खोलकर देखा तो कोई रंग न आया था। फिर वैसे ही बांध दिया। खोलती, दखती, फिर बांध देती। इस तरह उसने पूरे दिन मेहनत की, पर कुछ हुआ नहीं। बहू इस खोला-मुंदी से हैरान हो गई। पर हाथ रचाने के चाव और सास के भय से चुप थी। अन्त में उसने पत्ते उतारकर फेंक दिए। अब उस गुजराती बहन के मन में शक पैदा हुआ कि उस मारवाड़ी स्त्री ने मुझे गलत तरीका बताकर धोखा तो नहीं दिया। पर धोखा क्यों देगी? उसके मन में बड़ी साधु थी कि मेंहदी रचने के बाद अपनी पतोहू के हाथ पास-पड़ोस की स्त्रियों को दिखाकर चकित करे। स्वाभाविक था यह। पर उस स्त्री के मन-की-मन में ही रही।
संयोग से, दूसरे साल सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में उन दोनों स्त्रियों की भेंट फिर हुई। राम-राम के बाद गुजराती बहन ने पहला सवाल यही किया, “क्यों बहन, मेरी पतोहू सारे दिन हाथ बांधे बैठी रही। बेचारी की भारी सजा हुई तुम्हारी शरारत से।”
उसकी बात सुनकर मारवाड़ी महिला हक्की-बक्की रह गई। माजरा कछ उसकी समझ में न आया। बोली, “बहन, तुम्हारी बात तो पहेली-सी लगती है, साफ समझाकर कहो तो कुछ मालूम भी हो।”
“अरे, वही मेंहदी की बात। मोम से लिखने में इतनी मेहनत की, पत्तियां बांधी, पतोहू को सारे दिन बिठाकर रखा।”
“बांधी कैसे थीं?-पीसकर?”
“पीसने को तुमने कब कहा था?”
“बहन, तुम्हारा कहा सिर-माथे पर, मुझे कसूरवार भले ही ठहराओ। पर तुमने मेरी पूरी बात सुनी ही कहां थी? बीच में ही तो तुम बोल उठी थीं, “समझ गई।” मैंने मन में सोचा कि समझ गई तो ठीक है। बताओ, मैं क्या करती? खैर, अब यह मारवाड़ी कहावत याद रखो “मंदी-र पत्त-पत्त में रंग, पर बांट्यां सूं।” मतलब, मेंहदी के पत्ते-पत्ते में रंग है, पर पीसने पर। उर्दू में भी एक शेर है:
इन्सां सुर्खरू होता है ठोकरें खाने के बाद
हिना (मेंहदी) रंग देती है, पत्थर पर पिसने के बाद।