पांच पचासों ले गया, पांचों ले गया एक।
टका रुपया ले गया, अब बैठा–बैठा देख॥
एक आदमी के पास पचास रुपये थे। उसने सुन रखा था कि ऊंचे सूद की कमाई से आदमी जल्दी धनी हो जाता है। खोजते-खोजते ऊंचे ब्याज पर रुपया लेनेवाला एक आदमी उसे मिल गया। एक महीने में पचास के पांच रुपए सद, और वह भी पहले। पचास में पांच काटकर उसने पैंतालीस दिए। फिर दूसरे आदमी को पांच रुपए दिए, महीने भर में एक रुपया सूद लेने के करार से। और वह भी एक रुपया पहले ही। वह एक रुपया भी एक टके रोज के ब्याज पर दे दिया। सोचा, कल से एक टका तो आने ही लगेगा, महीने में पन्द्रह आने यह हो जाएंगे, एक रुपया असली आ जायगा। और फिर पांच रुपएवाला दे जायगा। उसी समय पचास भी आ जाएंगे। इस तरह महीने में मेरे पास सत्तावन रुपए हो जाएंगे और उन सत्तावनों को फिर इसी तरह दे दूंगा तो साल भर में बढ़ते-बढ़ते मेरे पास कई सत्तावन हो जाएंगे। पर दो-चार दिन बाट देखतेदेखते भी टका न आया और न महीने के अन्त में एक रुपया आया, न पांच, न पचास। उसने अपने एक पड़ोसी से अपना दुःख सुनाया तो उसने ऊपर लिखा दोहा बना दिया।