पढ़ा है, गुना नहीं
Padha Hai, Guna Nahi
किसी राजा ने अपने पुत्र को ज्योतिष पढ़ने एक बड़े ज्योतिषी-के पास बिठाया।
ज्योतिषी का और राजा का लड़का साथ ही पढ़ते थे। कई साल बाद ज्योतिषी ने राजा से प्रार्थना की, “महाराज, राजकुमार की शिक्षा पूरी हो गई है।” राजा ने परीक्षा का एक दिन नियत किया। राजकुमार और ज्योतिषी का लड़का दरबार में बलाये गये। राजा ने मुट्ठी में चांदी की एक अंगूठी लेकर राजपुत्र से पूछा, “बताओ, मेरी मुट्ठी में क्या वस्तु है?”
राजकुमार बोला, “सफेद-सफेद गोल-गोल सी, कोई कड़ी चीज है, बीच में उसके एक सूराख है।”
राजा बहुत खुश हुआ और बोला, “इतना तुमने ठीक बतलाया, उस चीज का नाम क्या है?”
राजकुमार ने बतलाया, “चक्की का पाट।”
राजा को बड़ी निराशा हुई कि क्या ज्योतिष पढ़ा इसने। ज्योतिषी के लड़के से पूछा, “तुम बतलाओ कि मेरी मुट्ठी में क्या चीज है?”
उसने झटपट चांदी की अंगूठी बतला दी। राजा के मन में तुरत यह खयाल दौड़ आया कि ज्योतिषी ने अपने लड़के को तो विद्या ठीक सिखाई, पर मेरे लड़के को बेवकूफ रख दिया।
ज्योतिषी पर यह बात जाहिर की तो वह बोला, “महाराज, जहां तक विद्या का सवाल है, वहां तक तो दोनों ने बराबर ही सीखी है। उसके पहले के सही जवाबों से ही आप इसका सही-सही अंदाज लगा सकते हैं। लेकिन अक्ल तो जिसकी जितनी होती है, उतनी ही उसके काम आती है। इसमें विद्या का नहीं, अक्ल का घाटा है। उसे इस मामूली-सी बात को समझना चाहिए था कि मुट्ठी में चक्की का पाट आ कैसे सकता है? किसी को समझ देना बहुत मुश्किल काम है। आपके लड़के ने पढ़ा है, गुना नहीं।”