नीबू–निचोड़
Nimbu-Nichod
किसी सराय में एक नीबू निचोड़ रहता था। काम उसका इतना ही था कि हाथ में एक नीबू और छुरी लिए फिरता। जहां किसी मुसाफिर को खिचड़ी या दालरोटी थाली में परोसे देखता, तुरन्त अपना नीबू लिए उसके पास पहुंच जाता और कहता, “बिना नीबू के खिचड़ी का क्या मजा है, और बिना नीबू के दाल तो खाई ही कैसे जा सकती है?” यह कहकर झट उसकी खिचड़ी या दाल में अपना नीबू निचोड़ देता। मुसाफिर को मजबूर होकर कहना पड़ता, “अच्छा, तो फिर कुछ आप भी नोश फरमाइए (खाइए)।”
वह कहता, “मुझे भूख तो नहीं थी, लेकिन आपका कहना टाल भी कैसे सकता हूं? मैं खाऊंगा तो थोड़ा ही, लेकिन आपका जी चाहे जितना दे दीजिए।”
बेचारा मुसाफिर मुरौवत में आधे से कुछ ज्यादा ही देकर पूछता, “और?” तो नीबू-निचोड़ कहता, “मुझे तो आपको खुश रखना है। मेरा क्या है, थोड़ाज्यादा कम भी खा सकता हूं।”
धीरे-धीरे इस नीबू-निचोड़ को सब जान गये और लोग इसे दूर से देखते ही बोल उठते, “वह देखो, नीबू-निचोड़ आया।” और उसे अपनी दाल या खिचड़ी में नीबू डालने से रोक देते। लेकिन दिन-भर में एकाध नया मुसाफिर धोखे में आ ही जाता और नीबू-निचोड़ अपना काम बना लेता।
किसी ने कहा-
“दिखावें परमारथ, सिद्ध करें स्वारथ”
ऐसे ये नीबू-नीचोड़ हैं।