मुझे भी जीना है
Mujhe Bhi Jeena Hai
कोई एक रईस बीमार पड़े। थे समझदार, डाक्टर को बुलाया, सब दिखाया। दवा लिखवाई, मंगवाई भी। पर खाई नहीं। दूसरे दिन कुछ अच्छे रहे। फिर भी डाक्टर को बुलवाया, इसलिए कि पैसों की तो उनके पास कोई कमी थी ही नहीं। डाक्टर ने देखकर कहा, “कल से तो आज आप अच्छे जान पड़ते हैं, दवा ने अपना असर दिखाया जान पड़ता है। कल दिन भर में आपने दवा की कै खुराक ली थीं?”
“कहां? मैंने तो एक खुराक भी नहीं खाई।”
डाक्टर ने आश्चर्य से कहा, “आप क्या कहते हैं, एक भी नहीं खाई?”
रईस ने शीशी मंगवाकर सामने धर दी। शीशी के मुंह की कौन कहे, उसका कागज का सुन्दर पैकिंग भी ज्यों-का-त्यों था। डाक्टर को बड़ा ताज्जुब हुआ कि जब खानी नहीं थी तो इस भले आदमी ने दवा मंगवाई ही क्यों, और फिर मुझे आज बुलवाया क्यों?
डाक्टर ने रईस से पूछा, “आपने दवा क्यों नहीं खाई?”
“इसलिए कि मुझे जीना है।”
“फिर मंगवाई क्यों?”
“इसलिए कि दवा के दुकानदार को भी जीना है।”
“मुझे आज फिर क्यों बुलवाया?”
“इसलिए कि आपको भी जीना है।”
“हूं-हूं, मैंने भी सुना है कि कुछ लोग दवा से परहेज करने लगे हैं, लेकिन आपने पहले जो यह कहा कि ‘मुझे भी जीना है, वह पूरी बात मेरी समझ में नहीं आई।”
मेरा विश्वास है कि दवा से रोग जाता नहीं, कभी-कभी थोड़े समय के लिये दब-भर जाता है। और कुछ दिनों बाद दूसरा विकट रूप धारण करके निकलता है और वही दबाया हुआ रोग कभी-कभी जी का काल हो जाता है।”