Hindi Essay, Story on “Mera Bhi Mann Chalta Hai”, “मेरा भी मन चलता है” Hindi Kahavat for Class 6, 7, 8, 9, 10 and Class 12 Students.

मेरा भी मन चलता है

Mera Bhi Mann Chalta Hai

 

कुछ बाबुओं को छोड़कर शायद ही ऐसे लोग मिलें, जिन्हें गुड़ अच्छा न लगता हो। कई साल पहले मेरी एक ऐसे ही बाबू से भेंट हो गई। लखनऊ जा रहे थे। वह चम्पारन की एक चीनी मिल के मालिक थे। मैंने योंही इनका परिचय पूछा और फिर यह पूछा कि चीनी के मुकाबले में गड के बारे में आपकी क्या राय है? बोले, “आपका यह सवाल ही मुझे अजीब लगता है।”

मैंने कहा, “अजीब मालूम होने की एक ही वजह हो सकती है कि चीनी में आपका स्वार्थ है। अच्छा, आप मुझे सिर्फ यह बतायें कि खानेवाले के लिये चीनी लाभदायक है या गुड़?”

“कैसे कहं मैं, मैंने जिन्दगी में कभी गड खाया ही नहीं।”

“अब मेरा यह कहने को जी चाहता है कि आप अजीब ही आदमी हैं, जिन्होंने हिन्दुस्तान में पैदा होकर गुड़ नहीं खाया।”

इस कथन पर वह मेरी ओर जरा ध्यान से देखने लगे। मैंने कहा, “देखिए गुड़ को तो आदमी ही क्यों, ब्रह्माजी भी खाने को ललचा गये थे।”

“कैसे?”

“सुनिए, दुनिया में जब गुड़ के खानेवाले बहुत बढ़ गये तो गुड़ अपनी फरियाद लेकर इन्द्र के पास पहुंचा। पर फरियाद सुनने के पहले ही इन्द्र ने गुड़ की ओर अपना हाथ बढ़ाया। गुड़ वहां से भागा। इसी तरह वह गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा सबके दरबार में गया और सबका एक ही हाल पाया। अन्त में इस जगत के रचयिता ब्रह्माजी के पास जाकर उसने अपना संकट सुनाया कि जहां मैं जाता हं सब मुझे खाने को दौड़ते हैं। ब्रह्मा ने सुन-सुनाकर गुड़ स कहा, ‘भाग, भाग मेरा भी खाने को मन होता है।’

जब गुड़ ने देखा कि ब्रह्मा की नीयत भी डोल गई है तो चुपचाप वहां से भाग गया।

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