मैं सब एक साथ लेता आया
Mein Sab Ek Saath Leta Aaya
बात लखनऊ की है। एक नये बिगड़े रईस ने अपने कारिन्दे को एक बोतल ब्रांडी (शराब) लाने बाजार भेजा। कारिन्दा होशियार था और मालिक का सच्चा खैरख्वाह (भला चाहनेवाला)। उसकी दिली ख्वाहिश अपने मालिक की शराब की लत छुड़ाने की थी। पर अब तक कभी उसे कुछ कहने-समझाने का मौका न मिला था। आज उसे अवसर मिला। बाजार से उसके वापस आने पर रईस ने पूछा, “क्योंजी, शराब आ गई?”
कारिन्दा बोला, “सरकार, शराब तो अच्छी-से-अच्छी लाया हूं और उसके बाद की सब जरूरी चीजें भी साथ लेता आया हूं। मैंने सोचा, फिर दौड़ना पड़ेगा, इससे अच्छा है कि सब साथ ही लेता चलूं।”
रईस की समझ में न आया कि यह आदमी और क्या जरूरी चीजें लाया है। पूछा, “शराब के बाद की चीजें क्या होती हैं?”
“कछ तो हुजूर जानते हैं। जो नहीं जानते, वे मैं बतलाए देता हूं। शराब के बाद पहली चीज वेश्या है, उसे तो आप पहचानते ही हैं।”
“अच्छा, दूसरी चीज?”
“डाक्टर!”
रईस ने पूछा, “डाक्टर कैसे?”
“कैसे क्या, वेश्यागमन के परिणामस्वरूप सुजाक होगा, गरमी होगी; कहिए, उसके लिए डाक्टर जरूरी होगा या नहीं?” रईस कुछ चिन्ता में पड़कर सोचने लगा। पूछा, “और कुछ?”
“और कुछ क्या, कफन, वह आखिरी चीज है।” रईस की आंखों के सामने शराब का नतीजा स्पष्ट रूप से घूमने लगा और उसी दिन से उसने शराब से तोबा की और कारिन्दे का बड़ा उपकार माना।