लेखा-जोखा थाहे, लड़िका डूबल काहे
Lekha-Jokha Thahe, Ladika Dubal Kahe
एक मुंशीजी अपने चार बच्चों को लेकर पैदल नदी पार कर रहे थे। उन्होंने सब लोगों के पार करने की जगह से अलग ही जगह पार करने की ठानी। थी। कारण पूछने पर कहने लगे, “सब बेवकफ हैं कि उतनी दूर पार करने जाते हैं, पढ़े-लिखे नहीं है। उन सबों को हिसाब मालूम नहीं है, मैं अभा यहीं बैठे-बैठे पानी-की गहराई का हिसाब लगा लेता हूं। देखियेगा, हम सब लोग यहां से आराम से पार करेंगे।”
मुंशीजी के हाथ में एक लाठी थी। उससे यहां-वहां चार जगह नापा। एक जगह चार फुट आया। एक जगह डेढ़ फुट, एक जगह दो फुट, एक जगह ढाई फुट-कुल दस फुट हुआ। उसमें चार का भाग देकर बोले, “बस, ढाई फट पानी है।” मुंशीजी के किसी बच्चे की ऊंचाई गले तक ढाई फुट से कम न थी। इसलिए चारों को बेखटके पानी में उतार दिया। खद पीछे रहे कि सब उस पार पहुंच जायं तो वह जायं। पहला लड़का चार फुट गहराई में पहुंचते ही डूबने लगा। उसका चिल्लाना सुनकर इधर-उधर के लोग जमा हो गये। मुंशीजी से पूछने लगे, क्या हुआ, क्या हुआ? मुंशीजी के एक हाथ में एक पेंसिल थी और एक हाथ में कागज। बड़े गौर से अपने जोड़े हिसाब को देख रहे थे और मन-ही-मन कह रहे थे कि हिसाब दुरुस्त है फिर लड़का डूबा क्यों?