खाट साथ जाती है
Khaat Saath Jati Hai
किसी ब्राह्मण के लड़के की शादी हुई। पतोहू के ससुराल आने के दो-चार दिन बाद ही सास ने अपने घर की शान दिखाने को पतोहू से कहा, “अरी, तेरा ससुर निमंत्रण खाने गया है, सो उसके लिए खाट बिछाकर रख।” मतलब यह था कि तेरा ससुर ऐसा बहादुर खानेवाला है कि लौटने पर खड़ा नहीं रह सकता, उसे फौरन पड़ने को खाट चाहिए।
“जैसी सास वैसी बहू।” बोली, अम्माजी. “आपके यहां की रीति कुछ निराली है, मेरे पीहर में तो ऐसा नहीं होता।”
सास ने पूछा, “तेरे पीहर में क्या होता है? और तू गंवई-गांव की बेटी ठहरी, ऐसे खानेवाले मर्द वहां कहां होंगे? यह गौरव तो तीन लोक से न्यारी इस मथुरा नगरी को ही प्राप्त है, माखनचोर कन्हैया की भूमि है न यह।”
बहू बोली, “नहीं अम्माजी, मेरे मायके में भी एक-से-एक बढ़कर खानेवाले पड़े हैं। वहां तो जब निमन्त्रण खाने जाते हैं तो खाट साथ जाती है!” -यानी चलकर घर आना कैसा, खाकर खड़े भी नहीं हो सकते!