काली भली न सेत
Kali Bhali na Set
एक राजा के दो रानियां थी। दोनों दुश्चरित्र और जादूगरनी थीं। एक दिन दोनों ने चील का रूप धारण किया और आकाश में जाकर परस्पर लड़ने लगीं। एक ने काला रूप धारण किया, दूसरी ने सफेद। राजा को किसी तरह मालूम हो गया कि ये दोनों जादूगरनी रानियां ही हैं। राजा पहले से ही इनसे पिंड छुड़ाना चाहता था, लेकिन उसे कोई उपाय न सूझता था। मारें या मरवाये तो मनुष्य हत्या के अपराध का भय था। पर आज चील के रूप में मारना बहुत आसान था। मंत्री से पूछा, “बोलो, पहले काली को बाण मारें या सफेद को ?”
मंत्री ने कहा, “दोनों को ही मारना चाहिए, न काली भली न सेत।”
एक कवि ने विरहिन को सामने रखकर कहा है–
“द्योमें (आकाश में) घटा सुहावनी, कै विरहिन के हेत?
कह्यो, कहाउत न सुनी? ‘काली भली न सेत’।”
अर्थात्-आकाश में सुहावनी घटा जरूर है, लेकिन क्या वह विरहिन के लिए वैसी है? तुमने कहावत नहीं सुनी है कि उसके लिए न काली अच्छी है न सफेद।