जिसका काम उसी को साजे
Jiska Kaam Usi Ko Saje
किसी गांव के एक जाट और बनिये में बडी दोस्ती थी। जाट खेती-बारी करता, बनिया व्यापार और लेन-देन। जाट की खेती कभी अच्छी उतर जाती, कभी – वर्षा की कमी-बेशी से वह घाटे में पड़ जाता। पर बनिया तो हमेशा कमाता ही कमाता। जाट के घर की मरम्मत तक न हो पाती, और उधर बनिये के कोठे-अटारी बनते जाते।
एक दिन जाट ने बनिये से कहा, “भाई, मुझे भी कोई रोजगार बतलाओ, जिससे चार पैसे की आमदनी हो।”
बनिया बोला, “तुम देखते ही हो, मेरा तो खास रोजगार बबूल के गोंद का है। यहां गोंद काफी मिलता है, और सस्ता मिलता है। मैं वह खरीदकर दूसरी जगह तेज भाव पर बेच लेता हूं। इसी में कुछ कमाई हो जाती है। मैं यहीं आने सेर खरीदता हूं और इसी बाजार में चार आने सेर बेचता हूं। तुम भी चाहो तो यह काम कर सकते हो।”
जाट ने सौ रुपए का गोंद खरीदकर डाल लिया और इस खयाल में रहा कि कोई थोक का ग्राहक आने पर सब एक साथ तोल दूंगा।
बनिया जो गोंद लाता, उसे पीठ पर लादकर हाथ-के-हाथ दूसरे बाजार में ले जाकर बेच आता। जाट के पास कोई थोक का ग्राहक न आया। बरसात में गोंद लटियाकर बहुत खराब हो गया। इधर गोंद का बाजार भी गिर गया। जाट ने बनिये से अपना गोंद खरीद लेने की प्रार्थना की। बनिये ने उसे गरजू समझकर सौ के कुल तीस रुपए दिये। उसने ठगा बेचारे जाट को। कहावत है, “जान मारे बनियां, अनजान मारे ठग।” बनिये ने वह गोंद पास के बाजारों में धीरे-धीरे बेचकर तीस के सौ उठा लिये।
इस भाव की दूसरी कहावतें :
1 जिसकी बंदरी वही नचावे,
और नचावे तो काटन धावे।
2 बनिज करेंगे बानिए, और करेंगे रीस,
बनिज किया था जाट ने, रह गये सौ के तीस।
3 देखा देखी साधे जोग,
छीजे काया बाढ़े रोग।