गुनाह करने को भी हुनर चाहिए
Gunah Karne Ko Bhi Hunar Chahiye
कलकत्ता में पार्कस्ट्रीट के पास कोहनूर एक नामी होटल है। जिसने यह प्रसंग बताया वह भी चाय पीने उस होटल में गया था। उसने देखा, दो आदमी अलगअलग मेजों पर बैठे, सुन्दर सुनहरे कामवाली कीमती चम्मचों से चाय पी रहे हैं। चम्मचें उस होटल की खास तौर से कीमती थी। दो में से एक की नजर चम्मच पर पड़ गई। वह अपना लालच रोक न सका। जब चाय पीने का लालच नहीं रुकता तब चम्मच चुराने का कैसे रुकता? उसने एक चम्मच अपनी जेब के हवाले की। दूसरी मेजवाला छिपी नजरों से यह तमाशा देख रहा था। वह शख्स उससे भी नम्बरी था।
उसी समय पांच-सात नाश्ता करनेवालों की एक टोली वहां पहुंच गई। उस शख्स ने अपना चाय का प्याला हाथ में उठाया और चम्मच मुंह में लगाए उन लोगों के पास जाकर बोला, “मैं जादू का खेल जानता हूं, आप लोग कहें तो दिखाऊं।”
कौन है जो जादू का खेल और नया सिनेमा नहीं देखना चाहता और कौन नई बात नहीं सूनना चाहता? सब बोल उठे, “हां-हां जरूर दिखाइए।”
उसने कहा, “देखिए, मेरे हाथ में यह चम्मच है, इसे मैं अपनी जेब में डालता हूं और दोस्त की जो उस मेज पर चाय पी रहे हैं, जेब से वह निकलेगी।”
सबकी आंखें उस आदमी पर जा पड़ी और वह वहां जा खड़ा हुआ। उस आदमी से बोला, “देखिए जनाब. मेरी चम्मच आपके कोट की जेब में आ गई है।” उसने चुपचाप मेज पर चम्मच निकालकर रख दी। कुछ बोला नहीं। जादूगर साहब सब लोगों को सलाम करके चम्मच जेब में डालकर नौ-दो ग्यारह हो गये।