दिल्ली में बारह वर्ष रहे
Delhi me Barah Varsh Rahe
आदमी को दिल्ली में बारह बरस बिताने के बाद संयोग से देहात में जाना पड़ा।
से अपने दिल्ली में बारह बरस बसने का बड़ा अभिमान था। बातबात में कहता, “हमारी दिल्ली में यह है, हमारी दिल्ली में ऐसा है, आप जानें क्या? आपको बड़े शहरों का पता क्या, वहां कैसे-कैसे लोग बसते हैं, वहां के तौर-तरीके, वहां की इमारतें, वहां के स्कूल-कालेज, नाटक, सिनेमा…।” जब सनो उसके मुंह से दिल्ली-ही-दिल्ली सुनाई देती, कभी दिल्ली की तारीफ खत्म ही न होती।
एक आदमी ने उसे दिल्ली के बारे में बहुत डींगे हांकते हुए सुनकर कहा, “भाई, आप दिल्ली की इतनी बातें करते हैं, दिल्ली हमने भी देखी है। दोचार बार गये हैं, ऐसा अनोखपन क्या है उसमें?”
“गये होंगे आप, पर दिल्ली में आप रहे कितने दिन?”
“हम वहां कभी एक साथ दो-चार दिन से ज्यादा तो नहीं रहे।” म “तब तुम दिल्ली की बात क्या जानो? मैं तो वहां बारह साल रहा हूं, पूरे बारह साल!”
एक दूसरा व्यक्ति पास खड़ा था, जो इस आदमी की कुल हकीकत से अच्छी तरह परिचित था। वह पूछ बैठा, “भला, यह तो कहो कि वहां तुम करते क्या थे?”
करने-धरने से क्या ताल्लुक है? हमने एक ज़माना बिताया है दिल्ली में।” “तो भी कहो न, काम तुम वहां क्या करते थे?”
कई बार पूछने पर भी न बतलाया तो उस व्यक्ति ने कहा, “तुम नहीं बतलाते तो मुझे ही बतलाना पड़ेगा। मैंने सुना है कि तुम बड़े दरीबे में एक भड़भूजे के यहां भाड़ झोंकते थे।”