चाहे जो रंग रंगाओ, खिलेगा अमउवा ही
Chahe Jo Rangao, Khilega Amua Hi
किसी देहात में एक रंगरेज रहता था। एक आदमी उसके पास अपना एकदो रजाइयों का अस्तर रंगाने ले गया। रंगरेज ने पूछा, “कहिए, किस रंग में रंगना है?” अक्सर लोग कारीगर की पसंद पर काम छोड़ते हैं। समझते हैं कि उसे वक्त के फैशन का ठीक पता होगा, इसलिए कि उसके पास सभी तरह के ग्राहक आते रहते हैं।
रजाईवाले भाई ने रंगरेज से कहा, “तुम्हें जो जंचे, वही रंग देना।”
रंगरेज को सिर्फ एक अमउवा (पके आम के गदे के रंग का-सा) रंग रंगना आता था। उस वक्त तक ये डामर (पत्थर के कोयलेवाले) रंग न चले
कि रंगरेज के पास दस रंगों के लिए दस डिब्बे रखे हों। एक-एक रंग के पीछे कई-कई चीजें जुटानी पड़ती थीं और उस वक्त रंगाई बड़ी मेहनत का काम था। उस रंगरेज के पास सिर्फ अमउवा रंगने का सामान मौजद था, पर वह ग्राहक को इसका पता न चलने देना चाहता था कि उसे दसरे रंगों का ज्ञान नहीं है। बोला, “चाहे नीला रंगाओ, चाहे ऊदा या लाल रंगाओ, चाहे जो रंग रंगाओ, पर खिलेगा अमउवा ही।”