भगवान जो करता है भले के लिए करता है
Bhagwan Jo Karta hai Bhale Ke Liye Karta Hai
एक राजा शिकार के लिए वन में गया। तलवार की धार देखते हुए उसके दाहिने हाथ की कानी अंगुली कट गई। साथ उसका मन्त्री भी था। राजा बहुत कराहने लगा तो मन्त्री ने सान्त्वना के रूप में कहा, “महाराज, भगवान जो करता है, भले के लिये ही करता है।”
राजा को इस पर बड़ा क्रोध आया कि मुझे तो इतनी तकलीफ हो रही है, मेरी एक अंगुली ही गायब हो गई और यह कहता है कि भगवान ने भले के लिये किया है। राजा ने उसी समय उसे मन्त्री पद से अलग कर दिया। कहावत है,
“राजा, जोगी, अगिन, जल इनकी उलटी रीति।
बचते रहिए परसराम, थोड़ी पालें प्रीति॥”
राजा का अंगुली का दर्द एक-दो दिन में जाता रहा। तीसरे दिन राजा शिकार के पछि घोड़ा दौड़ाते-दौड़ाते जंगल में दूर निकल गया। वहां डाकुओं का एक बड़ा गराह रहता था। उस गिरोहवालों ने राजा को पकड़ा। डाके के पहले देवी को एक मनुष्य की बलि देने का उनका पुराना रिवाज था। आज आज उन्होंने राजा की बलि चढ़ाने की ठानी। राजा ने बहुत अनुनय-विनय की, पर एक न सुनी गई। डाकुओं का सरदार राजा को देवी के सामने खड़ा करके उसका सिर धड़ से जुदा करने को ही था कि उसकी नजर राजा के दाहिने हाथ की कानी अंगुली पर पड़ी। उसकी तलवार रुक गई। राजा बंधनमुक्त कर दिया गया। सरदार बोला, “यह व्यक्ति बलिदान के योग्य नहीं है, इसके तो एक अंगुली ही नहीं है। खंडित जीव है यह।” राजा के लिये तो, ‘जान बची लाखों पाए।’
वहां से वह बेहताशा भागा। घोड़ा तो उसका डाकुओं ने पहले ही ले लिया था। कई दिन पैदल चलकर अपने राज्य में पहुंचा। पहुंचते ही पहले उस मन्त्री को तलाश करवाया। सब घटना सुनाकर उसे अलग करने पर बड़ा दुःख प्रकट किया। मंत्री ने कहा, “महाराज, मेरे लिये भी भगवानने भला ही किया था। मुझे आप निकाल न देते तो मैं आपके साथ जरूर होता और मेरा तो बलिदान हो गया होता, क्योंकि मैं तो कहीं से खंडित नहीं था।”