बाघे से बेसी टिपटिपवैकै डर
Baghe Se Besi Tiptipveke Dar
एक लकड़हारा खच्चर पर जंगल में लकड़ी लाने गया। संयोगवश जंगल में गई। बरसात के दिन थे। लौटते हुए रास्ते में एक बढिया की झोपड़ी में ठहरा। खच्चर बाहर बांध दिया। बुढ़िया से पूछा, “क्यों बुढ़िया माई, रात को यहां किसी बाघ-शेर-भालू का डर तो नहीं है?”
बढिया बोली, “नहीं बेटा, बाघ का तो नहीं, पर मुझे तो बाघ से बेसी टिपटिपवे का डर लगता है।”
झोंपड़ी के पीछे एक शेर खड़ा सुन रहा था। सोचने लगा, मुझसे जबर्दस्त यह ‘टिपटिपवा’ कौन जानवर है? रात को आंधी आई और उसके बाद जोर की वर्षा। बुढ़िया ने लकड़हारे से कहा, “लो, आ गया टिपटिपवा।”
लकड़हारा अपने खच्चर को संभालने झोंपड़ी से बाहर निकला। खच्चर खूटे से छूटकर पास ही चरने लगा था। वह शेर झोंपड़ी के पीछे टिपटिपवा के डर से दबक कर बैठा था। लकड़हारा खच्चर को खोजते हुए पीछे की ओर गया तो अंधेरे में उसने शेर को खच्चर समझकर उसका एक कान पकड़ा और लाकर झोंपड़ी के सामने बांध दिया। शेर ने समझा यही टिपटिपवा है, जिसकी बुढ़िया बात करती थी। दुम दबाये डर के मारे लकड़हारे के साथ चला आया। बुढ़िया ने अंधमुंदारे (बहुत तड़के) जब झोंपड़ी से निकलकर शेर को दरवाजे पर बंधा देखा तो जोरसे चिल्ला उठी और लकड़हारा तो शेर को देखते ही सूख गया। अरे, रात को मैंने खच्चर के धोखे में शेर को लाकर खूटे से बांध दिया था। उसी समय देखा तो थोड़ी दूर पर उसका खच्चर चर रहा था। अंधेरा दूर होते ही शेर भी गले का फंदा तुड़ाकर भाग गया।
बुढ़िया से लोगों ने घटना का पूरा बयान पूछा। लकड़हारे ने कहा कि यह सब उसी टिपटिपवा की बदौलत हुआ है। पर अभी तक यह पता न चला था कि बुढ़िया का वह ‘टिपटिपवा’ कौन जानवर है? दरियाफ्त करने पर बुढ़िया ने कहा, “मैं तो बरसात की रात में सबसे ज्यादा अपनी छान के टपकने से डरती हूं।” छान से टपकने में ‘टिपटिप’ शब्द होने को वह ‘टिपटिपवा’ कहती थी।