आओ मियांजी छान उठाओ
Aao Miyaji Chan Uthao
एक मियांजी सफर करते हुए किसी किसान के घर रुक गए। मियां बातें बनाने में बढ़े-चढ़े थे, पर काम में निरे कमकस। किसान के दालान में बैठे पान लगालगाकर खा रहे थे। किसान को अपनी छान उठवानी थी। देहात में छान बहुत बड़ी न हुई तो जमीन पर छा ली जाती है, फिर उठाकर ऊपर डालते हैं। उसके उठाने में पांच-सात आदमी लगते हैं। काम पांच-सात मिनट का ही होने पर भी, जरा मेहनत का होता है। एक मुहावरा भी है, “इतने आदमियों को बुला रहे हो, कोई छान उठानी है?” छानवाले ने मियांजी से कहा, “आओ, मियांजी, छान उठाओ।”
मियां बोले, “हम बूढ़े, कोई जवान बुलाओ।”
छान तो उठ ही गई। खाने का वक्त होने पर किसान ने मियांजी से कहा, “आओ, मियांजी, खाना खाओ।” वह चट तैयार हो गए। बोले, “लाओ, हाथ धुलाओ।”
खाने के वक्त नहीं कहा कि हम बूढ़े हैं, कोई जवान बुलाओ।
इसी तर्ज का एक दोहा है:
रामभजन को आलसी, भोजन को हुसियार।
तुलसी ऐसे नरन को, बार–बार धिक्कार।