आंख के आगे नाक, सूझे क्या खाक?
Aankh ke Aage Naag, Sujhe Kya Khak
किसी गांव में एक नकटा रहता था। लोग जब-तब उसे चिढ़ाते-“नकटा जीये बुरे हवाल।”
नकटे ने कुछ और लोगों को भी अपने जैसा बनाने की ठानी, जिससे अकेला न चिढ़ाया जा सके।
उसने मशहूर किया कि मुझे आसमान की परियां नजर आती हैं। कल लोग उसके पीछे पडे कि हमें भी दिखाओ। बोला, “आज रात को दिखलाऊंगा। लेकिन एक रात में सिर्फ पांच ही आदमियों को परियां दिखाई दे सकती हैं। जो देखना चाहते हों, रात को ठीक बारह बजे दरिया-किनारे पहुंच जायं।”
ठीक बारह बजे पांच आदमी दरिया-किनारे पहुंच गए। नकटा नाच रहा था। उन पांचों ने कहा, “हमें परियां दिखाओ।” वह बोला, “मुझे परियों के साथ पहले नाच तो लेने दो।” वे बोले, “परियां कहां हैं? हमें तो नहीं मिल पड़तीं।”
नकटे ने कहा, “ऐसे कैसे दिखाई देंगी। तुम्हारी आंखों के आगे नाक जो है। उसके रहते परियों के दर्शन संभव नहीं हैं।”
“तब?”
“तब क्या, नाक काटो, यह लो चाकू। और फिर मजे से परियों के दर्शन करो।”
परियों के दर्शन के उन भूखों ने अपनी-अपनी नाक काट डाली। फिर भी परियां न दिखीं। तब वे उस नकटे को मारने चले। नकटे ने उन्हें समझाया, “भाई, मुझे पीटकर क्या फायदा होगा। सब आप लोगों की बेवकूफी पर हंसेंगे।
सबसे अच्छा यही होगा कि तुम भी मेरी तान में तान मिलाओ कि हमें भी परियां दिखाई देती हैं। योंही धीरे-धीरे सौ-पचास नकटे हो जाने पर हमारा
नकटा-पंथ” खड़ा हो जायगा। अनेक, नकटों के बीच एक नाकवाले को ‘नक्क’ कहा जाता है और बहुत नाकवालों के बीच एक बिना नाकवाले को ‘नकटा’ कहकर चिढ़ाते हैं। ज्यादा तादाद हो जाने पर लोग हम पर आक्षेप न कर सकेंगे।”
इस कहावत को किसी कवि ने एक शेर में बडी खूब से पिरोया है
“है अयां जलवा खुदा का इन बुताने हिन्द में,
सूझे क्या जाहिद तुझे खाक, आंखों के आगे नाक है।”
अर्थात् इन हिन्द की मूर्तियों में (श्रद्धालु दृष्टि से देखने पर) भगवान का प्रकाश विद्यमान है। पर तुझे क्या खाक दिखाई देगा, क्योंकि तेरी आंख के आगे तो नाक-यानी नासमझी की दीवार खड़ी है।”