आब–आब कर मर गए, सिरहाने रखा पानी
Aab-Aab kar mar gye, Sirhane rakha Pani
एक बनिया कमाई के लिए काबुल गया। वहां रहते-रहते फारसी बोलने लगा। पानी को ‘आब’ कहता। हिन्दुस्तान आकर भी अपनी फारसी की बान उसने न छोड़ी।
संयोग से वह घर पहुंचते ही बीमार पड़ा। बुखार की हालत में ‘आबआब’ चिल्लाता रहा। किसी ने समझा ही नहीं कि क्या चाहता है। वह प्यासाका-प्यासा ही मर गया। पूरा मिसरा है।
काबुल गए बानियां, सीखी मुगलिया बानी।
आब–आब कर मर गए, सिरहाने रखा पानी॥