उपकार का फल
Upkar ka Phal
एक बार एक शेर के पैर में एक बड़ा ही मोटा काँटा चुभ गया। शेर ने दाँत से बहुत नोचा, किन्तु काँटा निकला नहीं। वह लँगड़ाता हुआ एक गड़रिये के पास पहुँचा। अपने पास सिंह को आते देख गड़रिया बहुत डरा। परंतु उसने सोचा, भागने से कोई लाभ नहीं। शेर उसे दबोच ही लेगा। पास में कोई पेड़ भी नहीं था कि गड़रिया उस पर चढ़ जाए। कोई उपाय न सूझने पर गड़रिया वहाँ चुपचाप बैठ गया।
शेर न गरजा, न गुर्राया। गड़रिया के सामने बैठकर अपना पैर उसके आगे कर दिया। गड़रिया समझ गया कि शेर उसकी सहायता चाहता है। उसके पैर में चुभा काँटा देखकर, उसे निकाल दिया। शेर जैसे आया था वैसे ही जंगल की ओर चला गया।
कुछ दिनों के बाद वहाँ के राजा के यहाँ चोरी हो गई। कछ लोगों ने शत्रुतावश गड़रिये की शिकायत राजा से कर दी कि गड़रिया चोर है। गड़रिया पकड़ लिया गया, लेकिन उसके घर से चोरी की कोई वस्तु नहीं मिली। राजा ने यह समझा कि गड़रिये ने चोरी का माल कहीं छिपा दिया है, अतः उसने गड़रिये को शेर के सामने छोड़ने की आज्ञा दे दी।
संयोगवश गड़रिये को मारने के लिए वही शेर पकड़ा गया था गड़रिये ने जिसकी सहायता की थी। शेर ने उसे पहचान लिया। वह गड़रिये के पास आकर बैठ गया और पालतू कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगा। यह देखकर राजा को आश्चर्य हुआ। पूछने पर राजा को उपकारी गड़रिये के प्रति सिंह की कृतज्ञता का हाल ज्ञात हुआ, तब राजा ने गड़रिये को छोड़ने की आज्ञा दे दी।
शेर जैसा भयानक पशु भी अपने ऊपर किए उपकार को नहीं भूलता। मनुष्य होकर भी जो किसी का उपकार भूल जाते हैं, वे पशु से भी गए बीते हैं।
शिक्षा-किसी के उपकार को भूलना नहीं चाहिए।