Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Shahid Bhagat Singh”, “शहीद भगतसिंह”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students.

शहीद भगतसिंह

Shahid Bhagat Singh

भूमिका-आजादी ली नहीं जाती, वह छीनी जाती है। इसके लिए बलिदानों की आवश्यकताः होती है। भारत की स्वतंत्रता के लिए जिन वीरों ने अपना शीश मातृभूमि की झोली में अर्पित किया, उनमें शहीद भगतसिंह का नाम प्रमुख है। आज भी इस चरित्र नायक की समाधि पर प्रतिवर्ष वैशाखी के दिन आँसुओं के रूप में हजारों लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

जन्म-सरदार किशनसिंह, सरदार अजीतसिंह 18 सितंबर 1907 को जेल से छूटकर आए थे। इसी दिन ही उनके घर भगतसिंह का जन्म हुआ। तभी से उनकी दादी उन्हें ‘भाग्यों वाला’ के नाम से पुकारने लगी। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई, फिर डी. ए. वी. स्कूल लाहौर से मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद नेशनल कॉलेज में दाखिल हो गए।

देशभक्ति-भगतसिंह का परिवार देश-भक्त परिवारों में गिना जाता था। यह शूरवीर परिवार विदेशों में भी स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करता रहा। ऐसे ही कुल की संतान देश-भक्त भगतसिंह थी। इनके मन में मातृभूमि को विदेशियों के चंगुल से निकलवाने की ललक बचपन में ही जाग उठी थी। परिवार वाले इन्हें विवाह के बंधन में बाँधना चाहते थे, पर विवाह को देशुभक्ति के मार्ग में बाधा मानने वाले इस वीर ने विवाह होने से पूर्व ही घर छोड़ दिया।

क्रांतिकारी दल से संबंध-घर से निकलने पर भगतसिंह का संपर्क सबसे पहले शचींद्रनाथ सान्याल से हुआ और ये संपादक का कार्य करने लगे। इसके बाद कानपुर चले गए।

दल का पुनर्गठन-सन् 1928 ई. में चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारी दल का पुनर्गठन हिन्दुस्तानी समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ ने किया।

साइमन कमीशन का विरोध-इन्हीं दिनों इंग्लैंड से शासन-सुधार सम्बन्धी सुझाव हेतु एक दल भारत आया। भारत के सभी दलों ने उसका विरोध किया। सारा भारत ‘साइमन कमीशन लौट जाओ के नारों से गूंज उठा।

लाला लाजपतराय पर प्रहार-लाहौर से साइमन कमीशन का स्वागत जुलूस के रूप में काले झंडों से किया गया। लाला लाजपतराय जी इस जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। अंग्रेज सरकार ने जनता पर निर्दयता से लाठियाँ बरसायीं। लालाजी को अनेक चोटें आईं, जिनके कारण एक मास में ही उनका स्वर्गवास हो गया।

लालाजी का प्रतिकार-क्रांतिकारी दल ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निश्चय किया। भगतसिंह और उनके साथियों ने योजना बनाई। लालाजी पर लाठियाँ बरसाने वाले अधिकारी सांडर्स को कार्यालय से निकलते ही गोली का निशाना बनाया। सभी साथी पुलिस की आँखों में धूल झोंक कर पंजाब भाग गए।

असेंबली में धमाका-8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली असेंबली में दो बिल पास होने वाले थे-‘ट्रेड डिस्प्यट बिल’ और ‘पब्लिक सेफ्टील बिल’। ये दोनों बिल आजादी की माँग करने वालों की आवाज को दबाते थे। योजनानुसार बिल के विरोध में असेंबली में धमाके के लिये बम फेंके गए तथा कुछ पर्चे भी फेंके गए, जिन पर लिखा था-ये धमाके बहरों को सुनाने के लिए किए गए हैं।

गिरफ्तारी और मृत्युदंड-भगतसिंह एवं उनके साथी सुखदेव, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त आदि गिरफ्तार कर लिए गए। वीर भगतसिंह जेल में भी कैदियों की सुविधाओं के लिए लड़े। 24 मार्च, 1931 को भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दी जानी थी, परंतु जेल नियमों की परवाह किए बिना ही सरकार ने 23 मार्च सन 1931 को सायंकाल सात बजे ही इन्हें.फाँसी दे दी। फिरोजपुर के निकट इनकी समाधियाँ बनी हुई हैं। यहाँ वैशाखी के दिन मेला लगता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि-

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।

वतन पर मिटने वालों का, यही बाकी निशां होगा।।

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