रक्षा बंधन का त्योहार
Rakshabandhan ka Tyohar
आई है राखी, सुहाई है पूनो,
बधाई उन्हें, जिनको भाई मिले हैं।
भूमिका-भारत में प्रत्येक पर्व का अपना एक विशेष महत्त्व है। प्रत्येक पर्व का कोई न कोई संदेश है। पर्वो के कारण ही हमारी सभ्यता और संस्कृति को विदेशी नष्ट नहीं कर सके। दीपावली, दशहरा, जहाँ हमें अपने माता, पिता, भाई और पत्नी के प्रति कर्तव्य के लिये जागृत करते हैं, वहीं रक्षाबंधन यह स्मरण दिलाता है कि बहन के प्रति भाई के क्या कर्तव्य हैं?
समय-राखी का त्योहार श्रावणमास (अगस्त) की पूर्णिमा को आता है। अतः इसे ‘श्रावणी पूर्णिमा’ की कहते हैं हिंदू लोग इसे कब से मनाने लगे, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता।
पौराणिक कथा-एक पौराणिक कथा के अनुसार देवासुर संग्राम के समय जब देवताओं का पक्ष दर्बल होने लगा, तो देवराज इंद्र की पत्नी शची ने देवताओं और इंद्र को रक्षा कवच के रूप में राखी बाँधी थी तथा वे विजयी होकर लौटे थे। कालांतर में बहनों द्वारा अपने भाइयों के हाथों में रक्षा मत्र बाँधने की परंपरा चल निकली।
आशा और विश्वास का प्रतीक-भाई-बहन के अटूट स्नेह को बंधन में बाँधने वाला यह त्योहार आशा और विश्वास का प्रतीक है। यह त्योहार बहन के निर्मल प्रेम और भाई के संरक्षण का प्रतीक है। बहन को भाई पर अटूट विश्वास होता है और वह आशा करती है कि उसका भाई समय पर उसकी रक्षा अवश्य करेगा।
हमायूँ को राखी-मेवाड़ की वीरांगना कर्मवती ने हुमायूँ के पास राखी भेजी थी। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी के पवित्र धागे का सम्मान किया। बहादुरशाह ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया, तो हुमायूँ ने सहायता देकर चित्तौड़ की रक्षा की।
ब्राहमणों में राखी-प्राचीन समय में विदेशी आक्रमणों से पूर्व राखी बाँधने का काम पुरोहितों और ब्राह्मणों के हाथों होता था। उनमें आशीर्वाद देने की भावना निहित होती थी।
बहन-भाई का स्नेह-रक्षाबंधन का त्योहार अत्यन्त पवित्र त्योहार है। बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर मंगलकामना करती हैं। उन्हें चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देती हैं। भाई बहन से राखी बँधवा रुपये, वस्त्र आदि भेंट करते हैं। उस समय बहन भाई के प्रति अपना असीम स्नेह, उस धागे में उड़ेल देती है।
राखी का वर्तमान रूप-राखी के प्रति प्राचीन परंपरा लुप्त हो गई प्रतीत होती है। आजकल राखी का महत्त्व बहन के स्नेह नहीं, बल्कि राखी की सुंदरता और कीमत से आँका जाता है। बहन भी राखी के बदले भाई से अधिक से अधिक धन प्राप्त करना चाहती है। इस प्रकार इसका महत्त्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है और इसके प्रति श्रद्धा की भावना भी कम होती जा रही है।
उपसंहार-अपने देश की सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखने के लिए हमें अपने आदर्शों को जीवित रखना होगा। प्रत्येक पर्व के महत्त्व को समझ कर उसे उचित ढंग से मनाना होगा। राखी भाई-बहन का अटूट बंधन है। राखी की कीमत कच्चे धागे में नहीं, बल्कि बहन के प्यार, उसके सम्मान में है।