Hindi Essay, Paragraph, Speech on “My Train Journey”, “मेरी रेलयात्रा”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students.

मेरी रेलयात्रा

(My Train Journey)

भूमिका-यात्रा करने के अनेक साधन हैं। जैसे-बस, रेल, वायुयान आदि पर रेलगाड़ी में बैठकर यात्रा करने में जो आनंद आता है, जो सहानुभूति होती है, जो तृप्ति मिलती है, वह अन्य सवारियों में कहाँ। रेल द्वारा यात्रा करना सस्ता भी है और सुविधाजनक भी।

रेलयात्रा की योजना-रेल द्वारा आगरा भ्रमण करने की बात जब मैंने अपने कक्षाध्यापक को बताई तो उन्होंने शीघ्र ही कक्षा के समस्त विद्यार्थियों से बातचीत की। उन्होंने रेलयात्रा के इच्छुक छात्रों की तत्काल एक सूची बना डाली और अगले शनिवार को छात्रों को निश्चित किए गए समय से एक घंटा पूर्व रेलवे स्टेशन पर आने के लिए कह दिया। हम सभी छात्र नियत समय पर स्टेशन पहुँच गए। अध्यापक महोदय ने गाड़ी में यात्रा करने के लिए बच्चों को सावधानियाँ बताईं। तत्पश्चात हम मुंबई एक्सप्रैस में बैठ गए। गाड़ी में यद्यपि काफी भीड़ थी, फिर भी हमें किसी प्रकार की कोई असुविधा नहीं हुई क्योंकि हमारे कक्षा अध्यापक जी ने टिकटों का आरक्षण पहले से ही कर लिया था। हमने अपनी सीटों के आस-पास अपना-अपना सामान रखा।

गाड़ी का प्रस्थान-गाड़ी के डिब्बे में कुछ लोग सीटों पर बैठे हुए थे। कुछ लोगों ने अपना सामान फैला रखा था, कुछ लोग भेड़-बकरियों की तरह खड़े थे। वे बैठने के लिए कृपा-दृष्टि पाने के लिए देखने लगे। ठीक 10-30 बजे गाड़ी ने सीटी दी और चल पड़ी। कुछ लोगों ने धीरे-धीरे सभी को बैठने के लिए स्थान दे दिया।

चलती गाड़ी में बाहर का दृश्य-स्टेशन छोड़ते ही गाड़ी की गति तेज हो गई। छोटे-छोटे स्टेशनों को छोड़ती गाड़ी फक-फक चली जा रही थी। गाड़ी में बैठे हुए ऐसा प्रतीत होता था मानो गाड़ी खड़ी हो। वृक्ष और खंभे ही पीछे भागे जा रहे हों। कहीं खेतों की हरियाली, कहीं पशओं के झंड, कहीं फसल काटते किसान इन सबको छोड़ती गाड़ी अपनी मंजिल की ओर बढ़ती चली जा रही थी। बाहरी दृश्य बड़ा मोहक लग रहा था।

अंदर का दृश्य-अंदर का दृश्य भी मैत्रीपूर्ण हो गया। कई राजनीति पर बहस कर रहे थे। कई ताश खेलने में लगे हुए थे, कई पुस्तक, पत्रिका अथवा समाचार-पत्र में लीन हो गए थे। सारा वातावरण, जो झगडे का था, अब मित्रता में परिवर्तित हो चुका था। कभी-कभी कोई भिखारी या अपंग, दया-दष्टि पाने के लिये हाथ फैलाता। लोगों को आकर्षित करने के लिये गीत सुनाई देता, “गरीबों की सुनो वो तम्हारी सुनेगा; तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा”। टिकट चैकर आया तथा यात्रियों के टिकट का निरीक्षण करने लगा। टिकट पंच कर वह आगे बढ़ता जा रहा था कि एक व्यक्ति, जो बिना टिकट था उसे पकड़ लिया। दंड के साथ टिकट बनाकर वह आगे चला गया।

रेलवे स्टेशन का दृश्य-लगभग 1-30 बजे गाड़ी मथुरा पहुँची। हॉकरों की आवाज मधुर लग रही थी। गर्म चाय, मथुरा के पेड़े, गर्म पूरा की आवाज ग्राहकों को आकर्षित कर रही थी। मैंने भी चाय पी।

उपसंहार-मथुरा से प्रस्थान कर गाड़ी आगरे के लिए चल पड़ी। यह हमारा प्रथम पड़ाव था। हम उतरने की तैयारी करने लगे। आगरा से पूर्व राजा की मंडी पर ही हम सब उतर गए। वहाँ निकट की धर्मशाला में जगह पहले से ही आरक्षित की गई थी। वहाँ सामान रखकर, हम ताजमहल, लालकिला आदि देखने के लिए चल पड़े। सचमुच बड़ी रोमांचक होती है रेल की यात्रा, जिसे मैं कभी भूला नहीं

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