प्रातः काल का भ्रमण
(Morning Walk)
भूमिका-शरीर को स्वस्थ बनाए रखने और हृदय की प्रफुल्लता के लिए प्रातः काल का भ्रमण आवश्यक है। स्वस्थ शरीर से ही व्यक्ति हर प्रकार के कर्तव्यों को निभा सकता है और जीवन का आनंद ले सकता है। शरीर को नीरोग, प्रसन्न व स्वस्थ रखने का सरल उपाय है-प्रातःकाल का भ्रमण।
स्वर्णिम बेला-प्रातःकाल मनुष्य के लिए स्वर्णिम बेला है। यह बेला मनुष्य के लिए अमृत का बेला के समान है। यह वह समय है, जब मनुष्य प्रकृति से कुछ प्राप्त कर सकता है। प्रकृति का सौंदर्य देखते ही बनता है।
शांत व सुखद वातावरण-प्रातःकाल के समय सारा वातावरण शांत होता है। व्यस्त जीवन का शोर मानो कुछ देर के लिए थम गया हो। मंद-मंद समीर शीतलता प्रदान करता है। प्रातः भ्रमण से शरीर को स्फूर्ति और आनंद मिलता है।
प्रकृति का उदय-इस समय प्रकृति भी उठकर आलस्य त्याग अपने कार्य में लग गई प्रतीत होती है। फूल खिल उठते हैं। चहचहाते पक्षी अपने भोजन की तलाश में निकल पड़ते हैं।
भ्रमण का समय-किसी ने ठीक ही कहा है कि जल्दी सो जाने और जल्दी उठ जाने से व्यक्ति, संपन्न और सुयोग्य बनता है। अतः भ्रमण पर जाने का उचित समय सूर्य निकलने के एक घंटा पूर्व का होना चाहिए। शुद्ध वायु सेवन करने का उचित समय यही है।
भ्रमण के लिए स्थान-भ्रमण के लिये खेत, सुंदर बगीचे जहाँ सगंधि का साम्राज्य हो या किसी नदी अथवा झील के किनारे का स्थान सर्वोत्तम होता है। सार यह है कि घूमने के लिये कोई रमणीक स्थान होना चाहिए। नगर में रहने वालों को ऐसे स्थान सुलभ नहीं होते। उन्हें चाहिए कि पास के पार्क में जाएँ। खुली सड़कों पर भ्रमण करें।
सैर की तैयारी-सैर पर जाने के लिये ढीले वस्त्र पहनें। यदि घास पर चल रहे हैं तो नंगे पाँव चलें। चाल तेज हो, पग लंबे हों। मुँह बंद हो, लम्बी-लम्बी साँस लें। छाती निकाल, सीना तानकर बाजू हिलाते हुए चलते समय शरीर के सभी अंग कार्य करते हों। भ्रमण के समय किसी भी प्रकार का विचार अथवा चिंता को पास न फटकने दें। बस फिर देखें भ्रमण का आनंद।
आलस्य का शत्रु-भ्रमण के लिये उठते समय तो आलस्य का अनुभव होता है, परंतु जब निकल ही पड़े तो आलस्य सारा दिन निकट नहीं फटक सकता। दिन भर शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। रक्त-नाड़ियाँ खुल जाती हैं। चेहरे पर रौनक आ जाती है तथा शरीर सुदृढ़ बनता है।
शरीर के विभिन्न भागों के लिये लाभकारी-प्रातःकाल का भ्रमण एक निःशुल्क औषधि है। जो भी लेने जाता है. प्रकति सबको देती है-हरी दब पर नंगे पाँव चलने से मस्तिष्क में ताजगी आती है, नेत्रों की ज्योति बढ़ती है, पेट के विकार ठीक रहते हैं। लंबे-लंबे साँस आक्सीजन की कमी को पूरा करते हैं, जिससे फेफड़े ठीक काम करते हैं।
उपसंहार-प्रकृति सचमुच स्वयं में एक आनंद है। परंतु इसका लाभ उठाने वाले बहुत कम लोग है। यही कारण है कि लोग बीमारियों को साथी बना लेते हैं तथा सृष्टि के इस स्वर्गिक सुख का भरपूर मजा नहीं ले पाते।