वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे
Manushya Wahi jo Manushya ke liye Mare
पल्लवन-गोस्वामी तुलसीदास ने कहा कि परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं और दूसरों को हानि पहुँचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीं। अधिकांश व्यक्ति अपने लिए जीते हैं, अपने लिए धन कमाते हैं और केवल अपनी स्वार्थ-पूर्ति में लगे रहते हैं, परन्तु ऐसे व्यक्तियों को पशु-तुल्य माना जाता है क्योंकि मनुष्य और पशु में यदि कोई महान अंतर है तो वह है-परहित की भावना का। पशु केवल अपने लिए जीता है जबकि मनुष्य दूसरों के लिए भी जीवन-यापन करता है। प्रकृति का कण-कण परोपकार में लीन है अतः मानव का भी कर्तव्य है कि वह ‘स्व’ की संकुचित परिधि से निकलकर ‘पर’ के असीम क्षेत्र में प्रवेश करे। संसार के अनेक महापुरुष जिन्हें आज भी हम श्रद्धा से शीश झुकाते हैं, परोपकारी थे। महात्मा गांधी, सुकरात, ईसामसीह, अब्रामलिंकन जैसे अनगिनत महापुरुष क्या केवल अपने लिए जिए?
उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानवता की सेवा में,लगा दिया और मानवता के लिए ही अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम भी परोपकारी बनें और मानवमात्र के कल्याण के लिए जिएँ।