Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Holi ka Parv”, “होली का पर्व”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students.

होली का पर्व

Holi ka Parv

“उड़ा गुलाल चली पिचकारी होली है भई होली है

नाच उठी है धरती सारी होली है भई होली है।”

निकल पड़ी मस्तों की टोली, होली है भई होली है

सबको अपने गले लगाओ, होली है भई होली है।”

भूमिका-पर्व जाति, धर्म और संस्कृति की एकता के प्रतीक होते हैं। भारत में रहने वाले विभिन्न अन्तर है। फिर भी उनकी भावनाओं में एकता है। इसका एकमात्र कारण है-यहाँ के त्योहार। होली का त्योहार भी इसी प्रकार का है। जब होली पर लोग अपने मतभेद भुला कर एक-दूसरे के गले मिलते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में सांप्रदायिकता जैसी बुराई है ही नहीं।

मनाने का समय-यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सर्दी को विदा देने और गर्मी का स्वागत करने के लिये यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। रंग और उमंग का त्योहार होली का त्योहार रंग और उमंग का अनुपम त्योहार है। इसे वसंत का यौवन कहा जाता है। प्रकृति भी यौवन के भार से लदी प्रतीत होती है, पीली सरसों मानो किसी की प्रतीक्षा कर रही हो। इस दिन हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी धर्मों के लोग अपने भेदभाव भला कर एक-दूसरे के गले मिलते हैं, गुलाल आदि का टीका लगाते हैं और वातावरण को खुशियों के रंगों से भर कर रंगीन कर देते हैं।

प्राचीन कथा-होली के त्योहार का संबंध अन्याय पर न्याय की विजय से है। दैत्यराज हिरण्यकशिप नास्तिक विचारों वाला था। इसके विपरीत उसका पुत्र प्रहलाद ईश्वर भक्त था। दैत्यराज हिरण्यकशिप ने उसे ईश्वर विमुख करने के लिए अनेक यातनाएँ दी, परंतु प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को यह वरदान मिला हुआ था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। परंतु प्रभु कृपा से होलिका तो अग्नि में जल गई, और प्रह्लाद को आँच भी नहीं आई। इसी घटना की स्मृति में लोग होली जलाते हैं, नाचते और गाते हैं।

समानता का प्रतीक-आशा और विश्वास से भरे इस त्योहार में धमी-निर्धन छोटे-बड़े सभी मिलकर रंगों में डूब जाते हैं। इस दिन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सभी होली के पर्व को मनाते हैं। इस दिन राजा और प्रजा सब एक हो जाते हैं।

होली मनाने का ढंग-होली के दिन लोहड़ी की भांति लकड़ियों का ढेर जलाया जाता है। स्त्रियाँ उसकी पूजा करती हैं, तो पुरुष उसके चारों ओर नाचते और गाते हैं और नई फसल की बालों को इस अग्नि में भूनकर अपने मित्रों, सगे-संबंधियों को बाँटते हैं। अगला दिन फाग का होता है। इस दिन मित्र, संबंधी सभी मिलकर रंगों से खेलते हैं। बच्चे पिचकारियों में रंग भरकर डालते हैं। लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं और गले मिलते हैं। दोपहर के बाद लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाइयाँ खाते हैं।

बुराइयों का समावेश-जहाँ फूल होते हैं, वहाँ काँटें भी अवश्य पाए जाते हैं। इस दिन कुछ लोग रंग की जगह कीचड़ फेंकते हैं। पानी से भर कर गुब्बारे वाहनों पर मारते हैं। भाँग, मदिरा आदि का सेवन करने में ही इस पर्व की शान समझते हैं। हमें इन बुराइयों को समाप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।

उपसंहार-वास्तव में यह त्योहार आज की आवश्यकता के अनुरूप है। होली के पवित्र पर्व का उद्देश्य आपसी ईर्ष्या, द्वेष को भुलाकर सद्भावना कायम करना है। आज जब सांप्रदायिकता रूपी सर्प भारत के लोगों को डस रहा है, इस त्योहार के दिन सभी लोग अपने वैमनस्य को त्याग, घृणा और वेष को होली की अग्नि में समर्पित कर गले मिलें, तो इस त्योहार को चार चाँद लग सकते हैं।

Leave a Reply