ईद का त्योहार
Eid Ka Tyohar
“मुसलमानों का सबसे प्यारा पर्व-‘ईद’ है उसका नाम
भाईचारे, मेल जोल का देता है सबको पैगाम।”
भूमिका-पर्व किसी जाति या धर्म की व्यक्तिगत धरोहर नहीं होती। पर्व का उद्देश्य अत्यंत उदार है। इनसे परस्पर वैमनस्य को भूल, प्रेम-मिलाप की प्रेरणा मिलती है। दीवाली, होली आदि हिंदुओं के प्रसिद्ध त्योहार माने जाते हैं। मुसलमानों में ईद का अपना विशेष महत्व है। यह त्योहार हजरत मुहम्मद के जन्म दिन के रूप में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
मुस्लिम जाति के मार्ग दर्शक-40 वर्ष की आयु में मुहम्मद साहब को नबुवत प्राप्त हुई। अपने महान कार्यों से इन्होंने मुस्लिम जाति का नेतृत्व किया तथा उनका मार्ग दर्शन किया। उन्होंने उपदेश दिया कि धनी-निर्धन सब समान हैं। आपसी शत्रुता को भूल, मिलकर रहना ही मानव धर्म है।
कुरान-कुरान मुसलमानों का पवित्र ग्रंथ है। विश्व का आधा भाग इस्लाम धर्म को मानने वाला है। आधे विश्व के अवतार की वर्षगाँठ को ईद त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
उत्सव की तैयारियाँ-हजरत मुहम्मद की याद में लोग एक महीना पहले ही रोजा रखने लगते है। पाँच बार नमाज पढ़ते हैं। रमजान के दिनों में लोग रात्रि में केवल एक समय भोजन करते हैं। नियमपूर्वक मस्जिद में जाकर खुदा की इबादत करते हैं। अपने व्रत का मुस्लिम लोग बड़ी कठोरता से पालन करते हैं। रोजों की समाप्ति पर ईद का वह शुभ दिन आ जाता है।
परस्पर मिलन का दिन-ईद के दिन ईदगाह पर नमाज अदा करने के बाद ‘ईदमुबारक’ इन शब्दों के साथ सभी एक दूसरे के गले मिलते हैं, भेंट देते हैं। इस दिन शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। वास्तव में यह त्योहार राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। सभी एक दूसरे के लिये सुखद कामना करते हैं। भारत जैसे देश में इस प्रकार के त्योहारों का अपना एक विशेष स्थान है। यही कारण है कि यहाँ भिन्न-भिन्न जाति और धर्म के लोग रहते हुए भी एकता के सूत्र में बँधे हुए हैं।
ईदगाह का मेला-इस पावन पर्व को मनाने के लिये ईदगाह पर मेलों का आयोजन होता है। नवीन वस्त्र धारण कर बालक, जवान, बूढ़े सभी मेले की शोभा बढ़ाते हैं। इस दिन नए वस्त्र पहनना अपना धर्म समझते हैं। घर-घर पकवान बनाए जाते हैं। राष्ट्रीय एकता का दिन यह पर्व एकता का पर्व है। क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख, क्या ईसाई सभी अपने मुस्लिम मित्रों को ईद मुबारक देते दिखाई देते हैं। मुसलमान भी इस दिन सबसे गले मिल उनसे अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं।
उपसंहार-सांप्रदायिकता की आग मानव की दुश्मन बन रही है। आज आवश्यकता है देश में ईद जैसे पर्वो के महत्व को सारी जनता समुझे। हिंदू-मुस्लिम यदि अपने-अपने त्योहारों को मिल-जुल कर मनाएँ, तो आपसी वैमनस्य को समाप्त किया जा सकता है। महापुरुष किसी भी जाति का हो, उसका मुख्य उद्देश्य मनुष्य को शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करने का उपदेश देना होता है, न कि एक दूसरे के रक्त को बहाने का। हम ईश्वर से यही कामना करते हैं कि मानव समाज को सद्बुद्धि दे ताकि सब मिलजुल कर राष्ट्र की उन्नति में सहायक हों। हमें यह याद रखना चाहिए कि ईश्वर, अल्लाह, गॉड सभी नाम उस परमात्मा के हैं। विभिन्न धर्म ईश्वर तक पहुँचने के साधन हैं।