यात्रा का वर्णन
Yatra ka Varnan
हर आदमी की एक बंधी-बंधाई निश्चित दिनचर्या होती है जिससे आदमी अक्सर ऊब जाता है। फिर वह अपनी इस दिनचर्या में थोड़ा बदलाव चाहता है। इस परिवर्तन के लिए यात्रा का अत्यंत महत्व है। नए स्थानों पर भ्रमण से व्यक्ति के जीवन में नीरसता समाप्त हो जाती है और फिर वह अपने अंदर एक नया उत्साह पाता है तथा उसे नवीन अनुभव प्राप्त होते हैं, नई चीजें देखने को मिलती हैं और नए लोगों से संपर्क होता है। इस प्रकार यात्रा व्यक्ति के लिए उपयोगी और महत्वपूर्ण सिद्ध होती है।
मई का महीना था। हमारी परीक्षाएँ समाप्त हो चुकी थीं। मेरे कुछ साथियों ने आगरा घूमने का कार्यक्रम बनाया। हमने अपने माता-पिता से आज्ञा लेकर विद्यालय के माध्यम से कन्सेशन प्राप्त करके टिकट बनवा लिए और सभी अपना-अपना सामान लेकर प्लेटफार्म पर आ गए। वहां बहुत भीड़ थी। गर्मी का समय था। थोड़ी देर बाद गाड़ी आई और हम सब उसमें चढ़ गए तथा अपनी-अपनी आरक्षित सीटों पर बैठ गए। कुछ ही देर में गाड़ी ने सीटी दी और गाड़ी चल पड़ी। गाड़ी में कुछ लोग ताश खेलकर, कुछ गप्पें मार के और कुछ उपन्यास पढ़ के टाइम पास कर रहे थे। मैं भी अपने साथियों से गपशप कर रहा था। फिर मैंने खिडकी से बाहर झांका तो मुझे प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य का आभास हुआ। मझे न और खलिहान पीछे दौड़ते नज़र आ रहे थे। बाहर खड़े छोटे-छोटे बच्चे तालियाँ बजा रहे थे। कहीं-कहीं बागों में मोर घूम रहे थे। फिर हमने कुछ समय ताश खेलकर बिताया। साथ में लाए भोजन और फलों को मिल-बाँटकर खाते हए हम यात्रा का भरपर आनंद ले रहे थे।
एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी, तो अचानक कानों में आवाज़ पड़ी-“पेठा, आगरे का मशहूर पेठा”, तो हम खुशी से उछल पड़े कि आगरा आ गया। हम सभी अपना-अपना सामान लेकर नीचे उतरे। फिर एक धर्मशाला में गए। शाम के 7 बज चुके थे। सिटी बस द्वारा फिर हम ताजमहल गए, जो संसार के सात आश्चर्यों में से एक है। हमने चाँदनी रात में ताजमहल के अनूठे सौन्दर्य को देखा। चाँदनी में ताज के सौन्दर्य में और भी निखार आ गया था।
ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज़ महल की स्मृति में कराया था। यह एक ऊँचे चबूतरे पर सफेद संगमरमर का बना है। इसके पीछे यमुना नदी बह रही है। इस चबूतरे के चारों कोनों पर चार मीनारें बनी हुई हैं। इमारत के ऊपरी भाग में चारों ओर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं। इमारत के अंदर दो कब्र हैं-एक मुमताज़ महल की और दूसरी शाहजहाँ की, लेकिन ये वास्तविक कबें नहीं हैं। वास्तविक करें नीचे तहखाने में हैं, जहाँ राजा और रानी को दफनाया गया था। इस ईमारत के चारों ओर बगीचे और लॉन हैं, जो इसके सौन्दर्य में चार चाँद लगा रहे हैं। ताजमहल के प्रवेश द्वार से मुख्य इमारत तक दोनों ओर फूलों की क्यारियाँ, फव्वारे तथा जलकुण्ड बने हुए हैं।
हम सब उसके सौन्दर्य को देखते हुए इतने खो गए कि समय का ध्यान ही नहीं रहा। फिर हम धर्मशाला लौट पड़े। अगले दिन हम लोग वहाँ की आकर्षक और सजीव स्मृतियों को मन में संजोए वापस लौटे। इस प्रकार हमारी यह रोचक यात्रा संपन्न हुई।