शिक्षक दिवस – 5 सितंबर
Shikshak Diwas – 5 September
शिक्षक दिवस (टीचर्स डे) भारत में हर वर्ष 5 सितंबर को डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। परंतु यह दिवस केवल भारत में ही नहीं मनाया जाता है, अपितु शिक्षक के प्रति आदर-भाव को प्रकट करने के लिए दुनिया के लगभग सभी देशों में अलग-अलग तिथि को मनाया जाता है। अमेरिका में मई के पहले मंगलवार को ‘नेशनल टीचर्स डे’ मनाया जाता है। इसलिए वहाँ शिक्षक दिवस के लिए कोई निश्चित तारीख नहीं है। इसी प्रकार चीन में शिक्षक दिवस एक सितंबर को होता है, और ब्रुनेई में हर साल 23 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वेनेजुएला में 15 जनवरी को, कोरिया में 15 मई को और ताइवान में 28 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
हम जानते हैं कि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन की शिक्षा मर्मज्ञता एवं शिक्षा-प्रेम के कारण मनाया जाता है। इस दिन विद्यालय का कार्यभार बच्चों के सुपुर्द कर दिया जाता है और बच्च शिक्षक बनकर एक शिक्षक का कार्य निर्वाह करते हैं।
सादा जीवन बिताने वाले डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को मद्रास के तिरूतणी नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने छात्र जीवन में आर्थिक संकटों का सामना करते हुए कभी हिम्मत नहीं हारी थी। डॉ. राधाकृष्णन भाग्य से अधिक कर्म में विश्वास करते थे। वह दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया था। सन् 1952 में वे देश के उपराष्ट्रपति चुने गए और दस वर्ष तक उपराष्ट्रपति के पद पर रहे। फिर 12 मई, 1962 में वे भारत के राष्ट्रपति चुने गए।
इसी दौरान चीन के आक्रमण के समय उन्होंने अद्भुत धैर्य और साहस का परिचय देते हुए संकटकालीन परिस्थिति की घोषणा की। शिक्षक, दार्शनिक, नेता और एक विचारक के रूप में समान रूप से सफल होने वाले डॉ. राधाकृष्णन मूलत: शिक्षक थे। अपने जीवन के 40 वर्ष उन्होंने अध्यापन कार्य में व्यतीत किए।
सादा जीवन जीने वाले डॉ. राधाकृष्णन को बच्चे विशेष प्रिय थे। बच्चे चाहे शोर करें या चीजें तोड़े-फोड़ें, वे उन्हें कुछ नहीं कहते थे; परंतु उनकी पुस्तकें कोई छेड़े या फाड़े, यह उन्हें सख्त नापसंद था।
स्वाधीन भारत के सामने जब उच्च शिक्षा की नवीन व्यवस्था का स्थापना का प्रश्न उठा तब तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद ने शिक्षा आयोग की नियुक्ति की योजना बनाई। उस समय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष डॉ. राधाकृष्णन को ही बनाया गया। इस पद हेतु सबसे उपयुक्त वही व्यक्ति थे।
सन 1950 में शिक्षा आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित हुई और आज भी भारत की शिक्षा व्यवस्था का आधार वही रिपोर्ट बनी हुई है। इस प्रकार देश की सेवा करते हुए 16 अप्रैल, 1975 को डॉ. राधाकृष्णन का देहावसान हो गया। भारत के अलावा पश्चिमी देशों तक में भारतीय ज्ञान का प्रभुत्व स्थापित करने वाले डॉ. राधाकृष्णन का नाम उद्भट शिक्षाशास्त्री के रूप में सदैव अमर रहेगा।