सरोजिनी नायडू
Sarojini Naidu
सरोजिनी नायडू ‘भारत कोकिला’ के साथ-साथ एक क्रांतिकारी देशभक्त और कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं। उन्होंने राजनीतिक क्षितिज को विशेष आभा प्रदान की। सरोजिनी नायडू उन रत्नों में से एक थीं जिन्हें गोखले और गाँधी जैसे महान नायकों ने गढ़कर महिमामण्डित किया था।
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हुआ था। वह अपने आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। सरोजिनी के पिता श्री अघोरनाथ चट्टोपाध्याय अपने समय के विख्यात वैज्ञानिक तथा समाज-सुधारक थे। सरोजिनी नायडू को ये गुण अपने माता-पिता से मिले थे। वह प्रतिभावान विद्यार्थी थीं। वह बाल्यावस्था से ही कविता लिखने लगी थीं। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘लेडी ऑफ द लेक’ शीर्षक की एक लंबी कविता लिखी थी। 1895 में वे उच्च शिक्षा के लिए लंदन चली गईं। 1898 में वे भारत वापिस आईं और उसी वर्ष दिसंबर में उनका विवाह डॉ. गोविन्द राजलु नायडू के साथ हो गया।
उन्होंने स्वयं के लिए अपना एक जीवन-दर्शन बनाया था-दूसरों की सेवा करना और सादा जीवन बिताना। उन्होंने चार बच्चों को जन्म दिया। उनकी दूसरी संतान कुमारी पद्मजा नायडू स्वतंत्र भारत में पश्चिम बंगाल की राज्यपाल बनीं।
सरोजिनी नायडू ने एक आदर्श वैवाहिक जीवन जीने के अलावा अस्पतालों में स्त्री-रोगियों की सहायता करना, लड़कियों के लिए विद्यालयों की संख्या बढ़ाना आदि सामाजिक कार्य भी किए।
सन् 1902 में गोपाल कृष्ण गोखले के प्रभाव में आकर सरोजिनी नायडू ने राजनीति में हिस्सा लिया। गोखले उनके राजनीतिक गुरु थे। उन्होंने महात्मा गाँधी के साथ कई राष्ट्रीय आंदोलनों में भी हिस्सा लिया। गोपाल कृष्ण गोखले, सरोजिनी नायडू और महात्मा गाँधी-तीनों ही हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे।
सन् 1925 में सरोजिनी नायड को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। 907 1930 में नमक कानन तोडने के लिए महात्मा गाँधी को डांडी यात्रा में भाग लिया। वह गाँधीजी के हर आंदोलन में उनके साथ रहीं।
त्पश्चात् भारत स्वतंत्र हआ। उसके बाद सरोजिनी नायडू को उत्तर का प्रथम राज्यपाल नियक्त किया गया। उनके कुछ सुप्रसिद्ध सकलन थे-“द गोल्डन थ्रेशहोल्ड” (1905), “द फायर ऑफ लंदन” (1912), “द बर्ड ऑफ टाइम” (1912) तथा “द ब्रोकेन विंग, (1917)। अपनी इन्हीं कविताओं के कारण लोगों ने उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी।
फिर एक बार वे बीमार पड़ी और 2 मार्च, 1949 को उनकी आत्मा इस नश्वर पिंजरे से उड़ गई।
संपूर्ण भारतवर्ष इस भारतकोकिला को सदैव स्मरण करता रहेगा और उनके महान् कार्यों का अनुकरण करता रहेगा।