मेरे जीवन का सबसे यादगार दिन
Mere Jeevan ka Sabse Yadgar Din
जीवन में अनेक घटनाएँ घटित होती रहती हैं, पर कई घटनाएँ सदा के लिए स्मरण बनकर रह जाती हैं। वो मेरे जीवन का सबसे यादगार दिन था जब मैं स्कूटर पर पीछे बैठकर रेलवे स्टेशन जा रहा था। सबह के सात बजे का समय था। मुझे अलीगढ़ के रेलवे स्टेशन से दिल्ली की ट्रेन पकड़नी थी। तभी मेरा चचेरा भाई जो स्कूटर चला रहा था, उसमें किसी ट्रक ने पीछे से टक्कर मार दी। वो तो बच गया, लेकिन मैं बड़ी तेजी से उछलकर दूर जा गिरा और गिरते ही मैं बेहोश हो गया। उसका स्कूटर तो पूरा ही ट्रक के नीचे आकर बुरी तरह से कुचल गया था।
फिर मेरे चचेरे भाई रजनीश ने मुझे उठाया और रिक्शे में बिठाकर मुझे एक अस्पताल ले गया। उसके बाद उसने अपने घर फोन किया। उसका घर नज़दीक था इसलिए सभी लोग तुरंत अस्पताल पहुंच गए। मेरा घर आगरा में था इसलिए वहाँ किसी ने खबर नहीं की ताकि मेरे माता-पिता परेशान न हों। दो घण्टे बाद मुझे होश आया, तो मैं खुद को अस्पताल में देखकर आश्चर्यचकित रह गया।
मुझे उस दिन दिल्ली में 12 बजे नौकरी के लिए इंटरव्यू के लिए उपस्थित होना था। परंतु उस वक्त मैं अस्पताल में था। यह देखकर मुझे बहुत दु:ख हुआ। वो मेरे जीवन का पहला इंटरव्यू था। परंतु एक कहावत है-“मेरे मन कछु और है, दाता के कछु और।” ईश्वर जो करता है, वही होता है।
मैंने देखा- मेरे बाएँ पैर में सूजन आ गई थी और मैं दर्द का अनुभव कर रहा था। वहाँ मेरे चाचा-चाची खड़े हुए थे। मेरे होश में आते ही वे बहुत खुश नज़र आ रहे थे। चाचाजी ने मुझे बताया-“बेटा, हमने तुम्हारे समी-पापा को इसलिए नहीं बताया कि वह परेशान होकर अभी दौडे चले आते। तुम्हें ईश्वर की कृपा से ज़्यादा चोट नहीं आई। बा थोड़ी-सी चोट है।”
फिर जब मैं होश में आ गया, तो डॉक्टर ने दवा लिखकर पर डिस्चार्ज कर दिया। फिर रिक्शे में बैठकर हम घर आ गए। उसके मेरे चाचाजी ने फोन करके मेरे पिताजी को बता दिया कि मेरे जरा मोच आ जाने के कारण मैं दो-तीन दिन बाद घर आऊँगा। भी सोचता हूँ कि मेरे चाचाजी ने धैयपूर्वक कितनी समझदारी का परिचा दिया था।
वह दिन मेरे जीवन का सबसे यादगार दिन है। मैं उस दिन को कमी नहीं भुला सकता। उस दिन मुझे अपने चाचा-चाची का वो प्यार देखने को मिला जिसे कदाचित् लोग सच्चा प्यार कहते हैं।