मेरा प्यारा घर
Mera Pyara Ghar
सबका अपना घर मंदिर होता है, स्वर्ग होता है। एक व्यक्ति को जो सुख-शांति अपने घर में मिलती है, वह उसे अन्यत्र कहीं नहीं मिलती।
एक कवि की ये पंक्तियाँ यही बताती हैं–
“एक चिड़िया के बच्चे चार,
घर से निकले पंख पसार,
पूरब से पश्चिम को धाए,
उत्तर से दक्षिण को धाए,
माता को ये वचन सुनाए–
देख लिया हमने जग सारा,
अपना घर है सबसे प्यारा।”
किसी का घर छोटा होता है, किसी का बड़ा होता है, कोई हवेली में रहता है और कोई महलों में रहता है। परंतु झोपड़ी में रहने वाले को यदि किसी व्यक्ति की हवेली या महल में रहने के लिए कहा जाए, तो उसे वहाँ वह सुख-शांति नहीं मिलेगी, जो उसे अपने घर में मिलती है। अतः अपना घर, चाहे छोटा हो या बड़ा, वही स्वर्ग के समान सुखदायक होता है।
एक चिड़िया के बच्चे को जितना सुख-चैन पेड़ पर बने छोटे से घोंसले में मिलेगा, उतना सोने के पिंजरे या मखमल के गद्दे पर नहीं मिलेगा। इसी प्रकार एक किसान को जितना सुख खेत की ऊबड़-खाबड ज़मीन पर लेटने में मिलता है, उतना आनंद उसे मखमल के बिस्तर पर नहीं मिलेगा।
मेरा घर मुझे बहुत प्यारा लगता है। मेरा घर छोटा-सा है। उसमें एक कमरा है जिसमें एक पलंग, एक टेलीविज़न, एक फ्रिज़ और दो कुर्सियाँ हैं। घर में एक छोटा-सा रसोईघर और बाथरूम है। घर में एक सीलिंग फैन है। घर की दीवारें गुलाबी रंग की सफेदी से पुती हुई हैं।
मेरा एक कमरे का घर ही सब कुछ है। वही मेरा डाइनिंग-रूम (भोजन-कक्ष) है, वही स्लीपिंग-रूम (शयन-कक्ष) है.वही स्टडी-रूम (अध्ययन-कक्ष) है और वही गेस्ट-रूम (अतिथि-गह) है। मेरे उसा घर में ठाकुर-द्वारा भी है, जहाँ मेरे माता-पिता प्रतिदिन सबह-शाम ईश्वर करी पूजा करते हैं। मुझे जितना आनंद और शांति मेरे छोटे-से घर में मिल है, उतनी कहीं और नहीं मिलती।
मैं गर्मियों की छुट्टियों में अपनी नानी के यहाँ जाकर रहता हूँ कभी अपने दादा-दादी के पास जाकर रहता हूँ, कभी मैं माता-पिता के साथ बाहर घूमने जाता हूँ तो धर्मशाला या होटल में रहता हूँ, परंतु जितना आनंद ने घर में आता है, उतना आनंद मुझे कहीं नहीं आता।
मेरा घर ही मुझे सबसे प्यारा लगता है। वही मेरे लिए मंदिर है और दो मेरे चारों धाम है। स्वर्ग से भी अच्छा है मेरा प्यारा घर।