मदारी
Madari
मदारी प्राचीन काल से अपना खेल दिखाता आ रहा है। जब अयाच्या में दशरथ के पुत्र राम पैदा हुए थे तब भगवान शिवजी मदारी का वश रखकर साथ में एक बंदर लेकर रामचंद्र जी के दर्शन करने अयोध्या थे। मदारी न केवल हमारा मनोरंजन करते हैं. बल्कि खेल दिखाकर अपनी जीविका भी कमाते हैं। लोग उनके खेल से खश होकर ताली बजाते हैं और फिर उसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार पैसे भी देते हैं।
मदारी अधिकांशतः अपने पास बंदर-बंदरिया, भालू (रीछ), साँप-नेवला आदि जानवर रखते हैं। जो मदारी बंदर-बंदरिया लेकर आते हैं. वे उनका नाच दिखाते हैं। उनके बंदर का नाम रामलाल और बंदरिया का नाम शीला होता है। बंदर शर्ट और बंदरिया घाघरा पहने होती है। बंदरिया जब अपनी ससुराल जाती है, तो बंदर उसे नाच-नाचकर मनाकर लाता है। यह खेल देखकर सबका बहुत अच्छा मनोरंजन होता है। इसी प्रकार भालू वाला मदारी अपने भालू को नचाता है। कुछ लोग भालू पर अपने छोटे बच्चों को भी बिठाते हैं। इसके बदले में वे मदारी को पैसे देते हैं। साँप और नेवले वाला मदारी साँप और नेवले की लड़ाई दिखाता है और बाद में झोली फैलाकर सबसे पैसे माँगता है। इस प्रकार ये जानवर उनकी आजीविका का साधन होते हैं।
गाँवों में मदारी बहुतायत में होते हैं। शहरों में मदारी बहुत कम दिखाई देते हैं, क्योंकि शहरों में प्रत्येक आदमी अत्यधिक व्यस्त होता है। शहर में किसी भी व्यक्ति को मदारी का खेल देखने की फुर्सत नहीं है। शहरों में बच्चे भी या तो स्कूल जाते हैं, या फिर ट्यूशन पढ़ने में व्यस्त होते हैं। थोड़ा-बहुत समय शेष रहता है, तो वे उसे टी.वी. देखने में बिताते हैं। इसके विपरीत गाँवों में लोग खेतों में काम करते हैं या बेकार यूँ ही घूमते रहते हैं। वहाँ बच्चे पढ़ने कम जाते हैं, या पढ़ने जाते भी है, तो उनके अधिकांश स्कूल खुले आसमान के नीचे या वृक्षों के नीचे होते हैं। वहाँ जैसे ही कोई मदारी खेल दिखाने आता है, थोड़ी देर में इकट्ठी हो जाती है। गाँव में लोग मदारी का खेल देखने के बदले के स्थान पर अनाज देते हैं।
आज के आधुनिक युग में मनोरंजन के अनेक साधन हैं। टेलीजि कंप्यूटर, सिनेमा, लूडो आदि ने मदारी को बहुत पीछे छोड़ दिया है। प्रतीत होता है, जैसे मदारी का युग समाप्त हो चुका गया हो! शहरों में तो मदारी बिल्कुल लुप्तप्राय हो गए हैं।
कभी मदारी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। वे हमारे मनोरंजन का साधन थे। उन्हें देखते ही मन में गुदगुदी होने लगती थी। सभी उनका खेल देखने के लिए उत्सुक रहते थे। जब वे डमरू बजाते थे, तो भीड़ इकट्ठी हो जाती थी। बेशक, आज हमें मदारी की कमी अनुभव होती है। परंतु गाँवों में हमें मदारी आज भी देखने को मिल जाते हैं, क्योंकि शहरों की अपेक्षा वहाँ खाली स्थान का अभाव नहीं है और लोगों को भी मदारी का खेल देखने की फुर्सत है।
मदारी हमें हमेशा एक सीख भी देते हैं कि मनुष्य को सदा दूसरों की सहायता करनी चाहिए और उसे मदारी जैसे गरीब और परिश्रमी लोगों के प्रति उदार तथा दयावान होना चाहिए।