Hindi Essay, Paragraph on “Jab Bus me Meri Jeb Kati”, “जब बस में मेरी जेब कटी”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

जब बस में मेरी जेब कटी

Jab Bus me Meri Jeb Kati

जब मैं पहली बार 1995 में दिल्ली आया तो यहाँ के वातावरण और रहन-सहन से बिलकुल अनजान था। मैं शाहदरा जाने के लिए करोलबाग से 350 नंबर बस में चढ़ गया। पहले तो बस खाली थी, लेकिन जैसे-जैसे वह आगे चलती गई उसमें भीड़ बढ़ती चली गई और आई.टी.ओ. पहुँचते-पहुँचते उस बस में इतनी भीड़ हो गई कि उसमें तिल रखने की जगह भी नहीं बची। तभी बस में एक वृद्ध महिला चढ़ी। वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। मैंने देखा-उस पर किसी को दया नहीं आई। परंतु मुझसे रहा नहीं गया और मैं अपनी सीट से उठकर खड़ा हो गया। फिर मैंने उस वृद्धा से बैठने के लिए कहा, तो वह मुझे आशीर्वाद देती हुई मेरी जगह बैठ गई। मुझे लगा, जैसे मुझे मेरी माँ ने आशीर्वाद दिया है। फिर कुछ देर बाद जब शाहदरा आया, तो मैं बस से उतर गया। बस से उतरने के बाद जब मैंने अपनी जेब देखी, तो जेब से पर्स गायब था। यह देखकर मेरे होश उड़ गए। उसमें एक सौ सत्तर रुपए थे। मुझे आभास हो गया कि बस में मेरी जेब कट चुकी है। तब तक बस भी खाली हो चुकी थी और बस ड्राईवर एवं कंडक्टर भी चाय वगैरह पीने जा चुक थे और मैं अपने आपको लुटा-लुटा सा अनुभव कर रहा था। इस कड़ अनुभव के बाद मैं दिल्ली की बसों में बहत संभलकर चलता हूँ।

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