इंदिरा गाँधी
Indira Gandhi
इंदिरा गाँधी को नारी रत्नों में गिना जाता है। भारत की इस महान ने विश्व के विशालतम जनतंत्र भारत पर 16 वर्ष तक एकछत्र शासन सा और विश्व में सर्वाधिक सशक्त महिला के रूप में ख्याति अर्जित की। कछ लोग तो उन्हें लौह महिला भी कहते हैं। वह विश्व में सर्वाधिक प्रभावशाली महिला थीं।
इंदिरा, पं. मोतीलाल जी की पौत्री और पं. जवाहर लाल नेहरू की पुत्री थीं। इंदिरा गाँधी का जन्म 29 नवंबर, 1917 को इलाहाबाद स्थित ‘आनंदभवन’ में हुआ था। शांतिनिकेतन की शिक्षा से गुरुदेव टैगोर का इंदिरा गाँधी पर बहुत प्रभाव पड़ा। महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और रवीन्द्र नाथ टैगोर के प्रभाव से समन्वित रूप वाले व्यक्तित्व के विकास ने इंदिरा गाँधी को विशिष्ट बना दिया था। उन्होंने परंपराओं को दरकिनार करते हुए एक पारसी युवक फिरोज़ गाधा से विवाह किया। उन्हें राजनीति और देशभक्ति अपने पिता पं. नेहरू से विरासत में मिली थी।
इंदिरा गाँधी सन 1956 में कांग्रेस की सदस्य बनीं और 1959 में ग्रस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। सन् 1964 में पं. जवाहरलाल २० के निधन के पश्चात श्री लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो जुलाई 1964 में इंदिरा गाँधी को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में में सम्मिलित किया गया। फिर लालबहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के पश्चात् 24 जनवरी, 1966 को इंदिरा जी को प्रधानमंत्री बनाया गया। इस प्रकार वह कई बार प्रधानमंत्री बनीं और 31 अक्तूबर, 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं।
इंदिरा गाँधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। भूतपूर्व राजाओं के प्रवीपर्स की समाप्ति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण कोयला खानों का राष्ट्रीयकरण आदि उनके साहसिक कार्य थे। इसके अलावा उन्होंने पाकिस्तान द्वारा किए नरसंहार को देखकर अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए, बंगलादेश की सरकार को मान्यता देते हए उसे स्वतंत्र कराया था।
भारतीय वैज्ञानिक द्वारा परमाणु विस्फोट करना उनके समय की महान उपलब्धि थी जिससे भारत विश्व के छठे परमाणु शक्ति-संपन्न देशों की श्रेणी में आ गया। उन्होंने ही राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में भेजा था। इस प्रकार हर क्षेत्र मे इंदिरा गाँधी ने भारत की शक्ति को बढ़ाया था।
पंजाब में बढ़ते आतंकवाद को इंदिरा गाँधी ने ही समाप्त किया था। उनके इस साहसिक कार्य से आतंकवादियों में रोष फैल गया। परिणामस्वरूप बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने 31 अक्तूबर, 1984 को प्रातः 10 बजे उन पर गोलियाँ बरसाकर उन्हें मौत की नींद सुला दिया।
उन्होंने कहा था-“यदि राष्ट्र के लिए मैं अपनी जान भी दे दूँ तो मुझे गर्व होगा। मेरे खून की एक-एक बूंद राष्ट्र की प्रगति में और देश को शक्तिशाली बनाने में सहायता देगी।” निस्संदेह उनकी खून की एक-एक बूंद देश की सेवा करते हुए बही। सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि वह भारत की ही नहीं, विश्व की एक महान नारी थीं।